पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३४७

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रामचन्द्रिका सटीक । हाथी मरे हैं अर्थ ऐसे मरे हाथिन के कतारे परे हैं मानों पर्वतन के खावां मारे हैं अथवा. नागनग जे गजमुक्ता हैं तिन के खाउँसम मारि गये हैं अर्थ यह जहां गजमुक्वन के खावां मारि गये हैं तहां हाथिन की कौन कहे १७ तेंतीसवें प्रकाश में कह्यो हैं कि " राम की जय सिद्धि सों सियको चले वन छोडि" सो जय सिद्धिरूप जे सीता हैं तिनको तौ वनमें छोड्यो जय सिद्धि कैसे प्राप्त होय सो त्रिकालज्ञ जे रामचन्द्र हैं ते यह विचार के सोई रहे १८ । १६॥ इति श्रीमजगज्जननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायामष्टत्रिंशत्प्रकाशः ॥ ३८ ॥ दोहा ॥ नवतीसवें प्रकाश सिय राम सँयोग निहारि॥ यज्ञपूरि सव सुतनको दीन्हों राज विचारि १ रूपमाला छंद ॥ चीन्हि देवरको विभूषण देखिकै हनुमंत । पुत्र हौं विधवा करी तुम कर्म कीन दुरंत ॥ बापको रण मारियो अरु पितृ भ्रातृ संहारि।पानियो हनुमंत बांधि न पानियो म्वहिं गारि २ दोहा॥माता सब काकी करी विधवा एकहि बार॥ मोसे और न पापिनी जाये वंशकुठार ३ दोधकछंद ॥ पाप कहां हति बापहि जैहो । लोकचतुर्दश ठौर न पैहो ॥ राज- कुमार कहै नहिं कोऊ । जारज जाइ कहावहु दोऊ ४ कुश ॥ मोकह दोष कहा सुनि माता । बांधि लियो जो सुन्यो उनि भ्राता॥ हो तुमही त्यहिबार पठायो । राम पिता कब मोहिं सुनायो ५ दोहा ॥ मोहिं विलोकि विलोकिकै रथपर पौढ़े राम ॥जीवत छोड्यो युद्ध में माता करि विश्राम ६ ॥ १ दुरंत अनुत्तम.गारि कलंक २ । ३।४।५ विश्राम क्षमा सुंदरीछंद ॥ प्राइ गये तवहीं मुनिनायक । श्रीरघुनंदन के गुणगायक ॥ बात विचारि कही सिगरी कुश । दुःख कियो मनमें कलिअंकुश ७ रूपवतीछंद ।। कीजैन विडंबन