३५२ रामनन्द्रिका सटीक । संतत सीते। भावी न मिटै सुकहूं जंगगीते ॥तू तो पति- देवनकी गुरु बेटी। तेरी जग मृत्यु कहावत चेटी ८ तोटक छंद ॥ सिगरे रणमंडलमांझ गये । अवलोकतहीं अतिभीत भये ॥ दुहुँ बालनको अतिअद्भुत विक्रम । अवलोकि भयों मुनिके मन संभ्रम ॥ कैसे हैं मुनिनायक कलि जो कलियुग है ताके अंकुश हैं ७ विडंबन दुःख हे बेटी ! तू पतिदेव कहे पातयतनकी गुरु है चेटी दासी तेरी आज्ञासों मृत्यु मरे वीरन को जियाइ है ८ इति भावार्थः छंद उपजाति है । ॥ दंडक ॥शोणितसलिल नरवानरसलिलचर गिरिबालि. सुत विष विभीषण डारेहें। चमरपताका बड़ी बड़वाअनल सम रोगरिपु जामवंत केशव विचारे हैं ॥ वाजि सुरवाजि सुरगजसे अनेक गज भरत सबंधु इंदु अमृत निहारे हैं। सोहत सहित शेष रामचन्द्र कुश लव जीतिकै समरसिंधु सांचेहू सुधारेहैं १० सीता--दोहा ॥ मनसा वाचा कर्मणा जो मेरे मन राम ॥ तो सब सेना जीउठे होहि घरी न विराम ११ दोधकछंद ॥जीय उठी सब सेन सभागी। केशव सोवतते जनु जागी ॥ स्यो सुत सीतहि लै सुखकारी । राघवके मुनि पायनपारी १२ मनोरमाछंद ॥ शुभ सुंदरि सोदर पुत्र मिले जहँ । वर्षा वर्षे सुर फूलनकी तहँ ॥ बहुधा दिवि दुंदुभि के गण बाजत । दिगपाल गयंदन के गण लाजत १३॥ . कविजन समरको सिंधुसम कहतई हैं औ कुश लव समर जीतिकै भंगनन सहित सांचो सिंधु सँवारयो इत्यर्थः सो कहत हैं सलिलचर ग्राहादि गिरि मैनाक रुधिर रंग सों अरुण चमर जानो रोगरिपु धन्वंतरि अड़तीसवें प्रकाश में कह्यो है कि हनुमंत को अरु जामवंतहि वाजिसों प्रसि लै चले तासों इहां दूसरे जामवंत जानो अथवा प्रथम ग्रसिलैगये हैं
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