रामचन्द्रिका सटीक। फेरि छोडिदिये हैं तेऊ तहां हैं भरत चंद्रमा हैं शत्रुन अमृत हैं १० विराम बेर ११ । १२ । १३ ॥ अंगद-स्वागताछंद ॥ रामदेव तुम गर्वप्रहारी । नित्य तुच्छ अतिवृद्धि हमारी ॥ युद्धदेव भ्रमतें कहि प्रायो।दास जानि प्रभु मारग लायो १४ रूपमालाचंद ॥ सुंदरी सुतले सहोदर वाजिलै सुखपाइ । साथलै मुनि वालमीकिहि दीह दुःख नशाइ ॥ रामधाम चले भले यश लोकलोक बढ़ाइ। भांति भांति सुदेश केशव दुंदुभीन वजाइ १५ भरत लक्ष्मण शत्रुहा पुर भीर टारतजात । चौंर ढारतहैं दुवौदिशि पुत्र उत्तमगात ॥ छत्रहै कर इन्द्र के शुभ शोभिजे बहुभेव । मतदंति चढे पढ़ें जयशब्द देव नृदेव १६ दोधकछंद ।। यज्ञ- थली रघुनंदन आये। धामनि धामनि होत बधाये ॥ श्री मिथिलेशसुता बड़भागी। स्योसुत सासुनके पंगलांगी १७॥ पच्चीसवें प्रकाश में अंगद कयो है कि "देवही नरदेव वानर नैर्ऋता- दिकवीर हो" तावातको ते कहत हैं कि हे देव ! तब जो हमसों युद्ध करिवे को कहि श्रायो रहै अर्थ हम युद्ध करिबे को कह्यो रहै सो भ्रमसों कह्यो रहै सो दास जानिकै हमारो गर्व दूरि करिकै हमको मार्ग राह लगायो रामचन्द्रको वचन रह्यो कि कोऊ मेरे वंशमें तोसों युद्ध करि है तब तेरो मन मोसों शुद्ध छैहै सो इहां अंगद को मन शुद्ध भयो जानो?४।१५।१६।१७॥ दोहा ॥ चारि पुत्र दै पुत्र सुत कौशल्या तव देखि ॥ पायो परमानंद मन दिगपालन सम लेखि१८ रूपमालाछंद। यज्ञपूरण कै रमापति दान देत अशेष । हीर नीरज चीर माणिक वर्षि वर्षा वेष ॥ अंगराग तड़ाग बाग फले भले बहु भांति । भवन भूषण भूमि भाजन भूरि वासर राति १६ दोहा ॥ एक अयुत गंज बाजि दै तीनि सुरभि शुभवर्ण । एक एक विहि दई केशव सहित सुवर्ण २० देव अदेव
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