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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३५०

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३५४ रामचन्द्रिका सटीक । नृदेव अरु जितने जीव त्रिलोक ॥ मन भायो पायो सबन कीन्हे सवन अशोक २१ अपने अरु सोदरनके पुत्र विलोकि समान ॥ न्यारे न्यारे देशदै नृपति करे भगवान २२ कुश लंब अपने भरतके नंदन पुष्कर तक्ष लक्ष्मणके अंगद भये चित्रकेतु रणदक्ष २३ भुजंगप्रयातछंद ॥ भले पुत्र शत्रुघ्न दै दीप जाये । सदा साधु शूरे बड़े भाग पाये ॥ सदा मित्रपोषी हनें शत्रुछाती। सुबाहै बड़ो दूसरो शत्रुघाती २४ दोहा ।। कुश को दई कुशावती नगरी कौशलदेश ॥ लवको दई अवंतिका उत्तर उत्तमवेश २५ पश्चिम पुष्करको दई पुष्कर- वति है नाम || तक्षशिला तक्षहि दई लई जीति संग्राम २६ अंगद कहँ अंगदनगर दीन्हों पश्चिम ओर ॥ चन्द्रकेतु चन्द्रावती लीन्हों उत्तर जोर २७ ॥ १८ नीरज मोती बागना रातो दिन देत कहे देत भये १६ अयुत दश हजार सुवर्ण दशमाशे का स्वर्णमुद्रा सुवर्ण दशमाशिक २०१२१ । २२ । २३ । २४ । २५ । २६ । २७॥ मथुरा दई सुबाहुको पूरण पावनगाथ ॥ शत्रुघातको नृप करयो देशहिको रघुनाथ २८ तोटकछंद॥यहि भांतिसों रक्षित भूमि भई । सब पुत्र भतीजन बांटि दई ॥ सब पुत्र महाप्रभु बोलि लिये । बहुभांतिन के उपदेश दिये २६ चामरछंद ॥ बोलिये न झूठ ईढ़ि मूढ़पै न कीजई । दीजिये जो बात हाथ भूलिहू न लीजई ॥ नेहु तोरिये न देहु दुःख मंत्रि मित्रको । यत्र तत्र जाहुपै पत्याहुजै अमित्रको ३० ना- राचछंद ।। जुवा न खेलिये कहू जुबानवेद रक्षिये । अमित्र 'भूमिमाह जै अभक्ष भक्ष भक्षिये ॥ करौ न मंत्र मूढ़सोंन गढ़ मंत्र खोलिये। सुपुत्र होहु जै हठी मठीनसों न बोलिये ३१