रामचन्द्रिका सटीक । ३५५ वृथा ने पीड़िये प्रजाहि पुत्रमान पारिये । असाधु साधु बूझि कै यथापराध मारिये ॥ कुदेव देव नारिको न वालवित्त लीजिये। विरोध विप्रवंशलों सो स्वमहू न कीजिये ३२ ॥ देशहिके अर्थ अयोध्याके समीप देशको २८ । २६ इति मित्रता जो वस्तु बात करिकै अथवा हाथ करिकै दीजिये ताको फेरि न लीजै ३० वेदको जुबान कहे वचन भूमि कहे स्थान ३१ पुत्रमान कहे पुत्रसम असाधु सदोष साधु निर्दोष कुदेव ब्राह्मण ३२॥ भुजंगप्रयातछंद ॥ परद्रव्य को तो विप्रप्राय लेखौ। परस्त्रीनसों ज्यों गुरुत्रीन देखौ ॥ तजौ कामक्रोधौ महामोह लोभौ । तजौ गर्वको सर्वदा चित्तक्षोभौ ३३ यशै मंग्रहौ नि- ग्रहौ युद्ध योधा । करौ साधुसंसर्ग जो बुद्धिबोधा ॥ हितू होइ सो देइ जो धर्मशिक्षा । अधर्मीनको देहु जै वाकभिक्षा३४ कृतघ्नी कुवादी परस्त्रीविहारी। करौ विप्र लोभी न धर्मा- धिकारी ॥ सदा द्रव्य संकल्पको रवि लीजै। द्विजातीनको प्रापुही दान दीजै ३५ सवैया ॥ तेरहमंडल मंडित भूतल भूपति जो क्रमही क्रम साधै । कैसेहु ताकहँ शत्रु न मित्र सु केशवदास उदास न बाधै || शत्रु समीप परे त्यहि मित्रसे तासु परे जो उदासकै जोवै । विग्रह संधिन दाननि सिंधु लीले चहुँ ओरन तो सुख सोवै ३६ ॥ काम, क्रोध, मोह, लोभ औ गई कहे मद औ क्षोभ कहे मात्सर्य ये जे छः हैं तिन को त्याग करियो ३३ योधा कई शत्रु अथवा जो लरिवे को उन्मुख होइ भीतादि को न मारियो इति भावार्थः। बुद्धिबोधा बुद्धि- युक्त जो धशिक्षा देइ सोई तुम्हारो हितू होइ अर्थ ताही को हितू करियो अधीनसों बोलियो न इत्यर्थः ३४ ये जे पांच हैं तिनको धर्माधिकारी न करियो संकल्प को द्रव्य जे दिये ग्रामादि हैं जिनकी रक्षा करियो आपुही अर्थ आपनेही हाथसों ३५ आपने देशके समीप को जो राजा है
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