पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३५२

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३५६ रामचन्द्रिका सटीक । ताको शत्रुता के आगे को मित्रताके आगे को उदासीन जोवै देखै जानै इति । याही भांति चारिहू ओर तीन तीन राजमंडल सर्व ददश राज- मंडल जानो औ मध्यमें आपनो राजमंडल जोरि सव तेरह भंडल मसिद्ध हैं तिनसों युक्त जो भूतल है ताको या प्रकार क्रमही क्रम साधै तौ ताको शत्र मित्र उदासीनता बाधै कैसे साधै सो कहत हैं कि शत्रु को विग्रह कहे दंड उपाय सों श्री मित्र को साधि कहे साम उपाय सों उदासीनको दान उपायसों युक्त करै इति शेपः तो सिंधुपर्यंत चारों ओर लैकै सुखसों सोवै "विषयानन्तरो राजा शत्रुमित्रमतः परम् । उदासीनः परतर इत्यमरः"३६ ॥ दोहा ॥ राजश्रीवश कैसेहू होहु न उर अवदात ॥ जैसे तैसे प्रापुवश ताकहँ कीजैतात ३७ यहि विधि सिखदै पुत्र सब बिदा करे दै राज ॥ राजत श्रीरघुनाथसँग शोभन बंधु समाज ३८ रूपमालाछंद ॥ रामचन्द्रचरित्र को जो सुनै सदा सुखपाइ । ताहि पुत्र कलत्र सम्पति देत श्रीरघुराइ ॥ यज्ञ दान अनेक तीरथ न्हानको फल होइ । नारिका नर विप्र क्षत्रिय वैश्य शूद्र जो कोइ ३६ रूपक्रांताछंद ॥अशेष पुण्य पापके कलाप आपने बहाह । विदेह राज ज्यों सदेह भक्तरामको कहाइ ॥ लहै सुभुक्ति लोकलोक अंत मुक्ति होहि ताहि । कहै सुनै परै गुनै जो रामचन्द्रचन्द्रिकाहि ४०॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामाणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायांकुशलवसमा- गमोनामैकोनचत्वारिंशत्प्रकाशः॥३६॥ ३७ शोभन सुंदर ३८ । ३६ कलाप समूह पुण्यपापके नाशसों मुक्ति होति है " अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् इति प्रमाणात् अथवा याके धारणसों प्राप्त जो यज्ञादिको अशेष संपूर्ण पुण्य है तासों | पापके कलाप यहाइ कै ४०॥ इति श्रीमज्जगज्जननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकायामेकोनचत्वारिंशत्मकाशः ॥ ३९ ॥ "