रामचन्द्रिका सटीक । वसिष्ठ-विजयछंद ।। एक सुखी यहि लोक बिलोकिये हैं वहि लोक निरै पगुधारी । एक इहां दुख देखत केशव होत उहां सुरलोकविहारी ॥ एक इहांऊ उहां अतिदीन सो देत दुई दिशिके जन गारी । एकहि भांति सदा सबनोकनि है प्रभुता मिथिलेश तिहारी २६ जाबालि-विजयाद ॥ ज्यों मणिमय प्रतिज्योतिहुती रविते कछु और महाछविछाई। चंद्राहि बदत हैं सब क्शन ईशते बन्दनता अति पाई॥ भागीरथीहुति पै अतिपावन बावन ते अति पावनताई। त्यों निमिवंश बडोई हतो भइसीय योग बड़ीयबडाई २७ विश्वामित्र-मालिनीछद ।। गुणगणमणिमाला। चित्तचा. तुर्य शाला ॥ जनक सुखद गीता । पुत्रिका पाइ सीता। अखिलभुवनभर्ता । ब्रह्मरुनादिकर्ता ॥ थिरचरअभिरामी। कीय जामातु नामी २८ दोहा । पूजि राजऋषि ब्रह्मऋषि इंदुभि दीन्हि बजाइ ॥ जनक कनक मंदिर गये गुरुसमेत सुख पाइ २६ ॥ २६ ईश महादेव २७ जनक संवोधन है गुणगणरूपी जे मणि मुक्तादि हैं तिनकी माला है अर्थ अनेक गुणनों युक्त है औ वित्त को जो चातुर्य चातुरी है ताकी शाला पर है अथवा चित्त है चातुर्य को शाला जाको अथवा चित्त की चातुर्य से शाला कहे गुहि रही है नौ सुखद है गीता गान जाको अर्थ जाको गान करे सुने सक्को सुख होत है ऐसी सीतानानी पुत्रिका को पाइकै अथवा ये तीनों लक्ष्मी के विशेषण हैं विशेषणनहीं सो | लक्ष्मी जनायो कि ऐसी जो लक्ष्मी हैं ताको सीतानाम पुत्रिका पाइकै अ- विल सपूर्ण सुबा को चोदा भुान के भता पोपक श्री ब्रमरुद्रादिके कर्ता भी थिर वृक्षादि चर मनुष्यादि रामें थभिगमी २ वासकतो अधया शोभाका श्री नामी कहे यशी ऐसो जायात तुम पीर कदे क्खो जैसे तीना विशेषण सा लक्ष्मी जनायो नेरो नारा विशेगणन सौप जानो yaradan
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