५७ रामचन्द्रिका सटीक। सौ लक्ष्मी जाकी पुत्रिका मई श्री विष्णु जामातु भये सासों अति भाग्यवान् हौ इति भावार्थ. अथवा विश्वामित्र कहत हैं कि जनकसुखद जे ईश्वर हैं जिन करिकै गीता कहे गाई अर्थ जाको विष्णुह गान करत हैं यासों खक्ष्मी जनायो और अर्थ एकई है ऐसी जो सीतानानी तुम्हारी पुत्रिका है ताको हम पायो औ सो जामातु तुम कीय कहे करयो यासों या जायो कि दूनों तरफ बड़ा लाभ भयो २८ ॥ २६ ॥ चामरछंद ।। श्रासमुद्रके क्षितीश और जाति को गर्ने । राजभौन भोजको सबै जने गये बने। भांतिभांनि अन्नपान व्यञ्जनादि जेवहीं। देत नारिगारि पूरि भूरि भरि भेनहीं३० हरिगीतछद ॥ अब गारि तुम कहें देहिं हम कहि कहा दूलह रामजू । कछु बापप्रिय परदार सुनियत करी कहत कुवामजू ॥को गर्ने कितने पुरुष कीन्हें कहत सब संसार। सुनि कुँवर चितदै बरणि ताको कहिय, सब ब्योहारजू ३१ ॥ प्रासमुद्र के कहे समुद्रपर्यंत अर्थ पृथ्वी भरे के भूरि भूरि भेवहीं कहे अनेक भेद सो ३० सात हरिगीतबद को अन्वय एफहै या श्लषसों श्रा- | शीर्वादात्मक व्याजस्तुति है परदार कहे परखी उत्कृष्टदार कुवाम कुत्सित वाम श्री कु कहे पृथ्वीरूप वाम व्योहार कहे संवध मित्रता इति कुवाम पक्षरत्नाकर कहे अनेक रनयुक्त पृथ्वी यह समुद्र शीश पश्चिम कारकै प्रो पाँय पूरब करिकै मलयकालके उपरांत जब शेषके फणि कहे फणनि की | मणिमाला मणिसमूह की पलिका अथवा शेष जे फणि कहे सर्प हैं जिनकी मणिमाला की पलिका में परति पौदति है तब अनेक पुरुषन को युद्धादि कराइ ग्रहण त्यागरूप मगध कियो करति है गातहैं सहजेही सुगंध युक्त जाके गधवती पृथ्वीति न्यायशास्त्रोकत्वात् जामबंधसों हिरण्याक्षादि जो पुरुष करथो सो क्रमही गनायो सरयस कहे सब सार कहे रसस्थादेति औ द्रव्य | भ्रमि कहे भूलिहू के ज्यों कहे जाते और पति को मुख म निरखै त्यों कहे ता प्रकारसों तुम ताको राखियो जानीको दशरथ राख्यो ताको तुम राखियो यह परिहास है नौ ताही पृथ्वीकी रक्षा तुम करियो यहाशीर्वादह ३१॥ बहरूप सों नवयौवना बहुरनमय वपु मानिये। पुनि वसन