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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/८८

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८४ रामचन्द्रिका सटीक । अत्यत भूले यद्यपि रामवनगमन सों ब्रह्मादि देवन को रावणवधादि हितकार्य है है परतु अवसर विलोकि तिनह को दुःख भयो ७ । ८ । ६ अन्नदाता औ सिखदाता औ कहू प्राणजात होई ता भयसों रक्षक औ राजा औ बाप औ जो मोल लैकै पोषिकै गात कहे बड़ो करै अर्थ जो मोल लै पालन करै ई जे छ है तिनकेदास औ पुत्र औ शिष्य श्री कोहू कहे और कोऊहाइ अर्थ अन्नग्राहक माणरक्षित श्री प्रजा जे छः हैं ते श्राज्ञाफा न मानें तो कोटि जन्मतक नरकजाई या जनायो कि एक तो राजा हैं दूसरे पिता हैं तासों विशषिक श्राज्ञा मानि हमको वनजैवो उचित है १०॥ कौशल्या-हरनीछद ॥ मोहिं चलौ वन संग लियें । पुत्र तुम्हें हम देखि जियें ॥ अवधपुरीमहें गाज परे । के अब राज भरत्य करै ११ राम-तोमरछद ॥ तुम क्यों चलो वन आज जिन शीशराजत राजु ॥ जिय जानिये पतिदेव । करि सर्वभांतिन सेव १२ पति देहजो अतिदुख । मन मानि लीजै सुख ॥ सब जन जानि अमित्र । पति जानि केवल भित्र १३ अमृतगतिछद ॥ नित प्रति पन्थहि चलिये । दुख सुखको दल दलिये॥ तन मन सेवहु पतिको । तब लहिये शुभगतिको १४ स्वागताछंद ॥ योगयागवत आदि जो कीजै हानगानगन दान जो दीजै॥धर्मकर्म सब निष्फल देवा । होहिं एक फल के पति सेवा १५॥ ११ तुम क्यों चली वन इत्यादि दश छदन में पातिव्रतधर्म सुनाइ रामचन्द्र माताको बोध फारत हैं राजु कहे राजादशरथ अथवा राजस्विन करिकै केवल पतिही को देव जानिये कहे जानी चाहिये १२ / १३ पतिही खिन कारकै निन्यप्रति पश कहे सुराह शास्त्रोक्त पनिवतनकी रीति इति नाम नलिये या प्रकार मुख औ दु सक इल करे समूह वो दलिये कहे मीना ना ना ना सका । करिये पापा । - ।दन माग सेवा