८५ रामचन्द्रिका सटीक। करियो उचित है और उपाय करियो उचित नहीं है इति भावार्थ १४ देव कहे देवता अर्थ देवपूजा १५ ॥ तात मात जन सादर जानो। देवरजेठ सगे सो बखानो। पुत्र पुत्र सुत श्रीविठाई। है विहीन भरता दुखदाई १६ कुडलिया ॥ नारी तजैन आपनो सपनेहू भरतार । पंगु गुगु बोरा बधिर अन्ध अनाथ अपार ॥अन्ध अनाथ अपार वृद्ध बावन अति रोगी । बालक पंडु कुरूप सदा कुवचन जड़योगी॥कलही कोढी भीरु चोर ज्वारी व्यभिचारी। अधम अभागी कुटिल कुपति पति तजैन नारी १७ पंकज- वाटिकाछद ॥ नारि तजै न मरे भरतारहि । तासँग सहित धनंजय झारहि ॥ जो केहूं करतार जिश्रावत। तौ ताको यह बात सुनावत १८ निशिपालिकाछद ॥ गान बिन मान बिन हास बिन जीवही । तप्त नहिं खाइ जल शीतल न पीरही । तेलतजि खेलतजि खाटतजि सोवही । शीतल जल न्हाइ नहिं उष्णजल जीवही १६ ॥ पुत्रसुत पौत्र '६ पड्ड पिंडरोगी योगी विरक्त भीरू कादर कुपति निर्लज्ज अथवा नपुसक १७ धनजय कहे अग्निकी मार सहति है अर्थ सती होति हिजो काहूप्रकार कर्तार निभावै अर्थ पति के संग ना जरयो जाइ तौ तिन | त्रिन के लिये यह बात है सो हम तुमको सुनावत हैं सो गान बिन इत्यादि दै छदम आगे कहता है १८ द्वैवंद को अन्वय एक है जल शीतल न पीवही अर्थ सीरो करिके जलन पीवै जैसो होइ तैसो पीवै शीत जल में | न्हाइ या जनायो कि गरम जल करि स्नान न करै जा समय जैसो पावै तैसे में स्नान करै काय मन वाच सब धर्म करिबो करै अर्थ ये जे सब धर्म है, तिनको मनसा वाचा कर्मणा कर अथवा और जे सप धर्म दानादि है तिमहुँन को करै कृच्छ उपवास कृच्छ चान्द्रायणादि सो जवलौ तनको अतीत कहे छोड़े अर्थ मरे तबलौं पुत्रकी सिख में लीन रहै पुत्रकी प्राज्ञामों
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