पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/९४

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६० रामचन्द्रिका सटीक। मिनी रूपरूरे ल देहधारी मनो। भूरि भागीरथी भारती हंसजा अंशके हैं मनो भागभारे भनो ॥ देवराजा लिये देवराती मनो पुत्रसयुक्त भूलोक में सोहिये। पक्षसंधि सध्या सधी है मनो लक्षिये स्वच्छ प्रत्यक्षही मोहिये ३६ ॥ मेघ श्री मंदाकिनी आकाशगंगा औ सौदामिनी कहे बिजुली ये तीनों देहधारी मानो सरेकहे सुदर रूप कहे वेषसालसतहै अथवा रे कहे विमल जो रूपसौदर्य है तेहि करिकै देहधारी लसै को शोभित हैं यासों या जनायो कि मे- पादिक तीनों जप सुदरतासों मिलिकै रूपधरै तब रामादिकन के रूपस महाइँ कि मानो भागीरथी गगा औ भारती सरस्वती जो हसजा यमुना तिनके जे हैं भूरि कहे सपूर्ण श्रश कहे,भाग तिनहिन के भारे भाग कहे भाग्यमनी कहे कहि यतहै अर्थ भागीरथी भारती सजाके अंशनके बड़े भाग हैं जिन ऐसे सुंदररूप पाय हैं भागीरथी के पूर्णीशावताररूप लक्ष्मण हैं भारती के पूर्णाशावताररूप सीता है यमुनाके पूर्णाशावताररूप रामचन्द्र हैं देवराजको पुत्र जयंत श्री की दूकडे दूना कृष्णपक्ष तिनकी सधि में स्वच्छ सध्या सधी है स्थित है। जाको प्रत्यक्षही लक्षिये कहे दखियत है औ शोभासों मोहियत है कृष्ण पक्षरूप राम हैं शुपक्षरूप लक्ष्मगा है सध्यारूप सीता है अथवा दूनों जे पक्ष हैं तिनय संधि कहे मध्य हैं तौ शुक्लादि गणनासो दुवोपक्षन को मध्य पूर्णिमा है तौ सधिपदते पूर्णिमा जानो याहू में पूर्णिमारूप सीता है दुवा पक्षरुप राम लक्ष्मण औ की तीनों सध्या परस्पर सधी है अर्थ कि एकश्न हैं भात सव्या रक्त है मध्याइसध्या शुक्ल है सायस-या श्याम है यथा सामसभ्यायां "पूर्वसभ्या तु गायत्री रझाङ्गी रक्तवाससा ।। मध्याहे तु या सध्या श्वेताही शेतपालसा १ अपराले तु या सध्या कृष्णाजी कृष्ण वाससा" कता सगसे व्यासपी या पाठ है तो दुधौ पक्षन के सग कहे साथ संध्यासधी है सो जानो ३६ ॥ अनगशेखरदंडक ॥ तड़ाग नीरहीन 'ते सनीर होत शिौदास पुंडरीक भुड भोरमडलीन मडहीं। तमाल वल्लरी समेत सूसिसखिकै रहे ने वाग फलिफूलि के समूल शूल खडहीं ॥ चिते चकोरनी चकोर मोर मोरनी ममेत इस ह. ER ERNAL wr.