पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१००४

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पष्ट सोपान, लङ्काकाण्ड । ९२९ रोवहिं नारि हृदय हति पानी । तासु तेज बल विपुल बखानी ॥ मेघनाद तेहि अवसर आवा । कहि बहु कथा पिता समुझावाशा स्त्रियाँ उसका अप्रमेय घल और तेज बखान यखान हाथ से छाती पीट पीट कर रोती है। उसी समय वहाँ मेघनाथ श्रोयो, उसने बहुत सी कथा कह कर पिता को समझाया ॥३॥ देखेहु कालि मारि अनुसाई । अबहिं बहुत का करउँ बड़ाई।। इष्टदेव साँ बल रथ पायउ । सो बल तात न तोहि देखायउँ ॥४॥ उसने कहा-मेरी बहादुरी फल्ह देखियेगा, अभी बहुत बड़ाई क्या कर १ मैंने जो बल और रथ इष्टदेव से पाया है, हे तात ! वह पराक्रम आप को नहीं दिखाया (उसकी आज तक कभी आवश्यकता हो न पड़ी) men एहि बिधि जलपत भयड बिहाना । चहुँ दुआर लागे कपि नाना । इत कपि-आलु काल सल बीरा । उत रजनोचर अति रनधोरा ।। • इस तरह व्यर्थ वकवाद करते सवेरा हुआ, बहुतेरे अन्दर चारों फाटक पर जो डटे। इधर पानर भालू काल के समान शूरवीर, घर बड़े ही रणधीर राक्षस ॥ लरहि सुभट निज निज जय हेतू । बरनि न जाइ समर खगकेतू ॥६॥ योहा लोग अपनी अपनी जीत के लिए लड़ते हैं, कागभुपएडजी कहते हैं-हे गरुड़। यह युद्ध घर्णन नहीं किया जा सकता ॥६॥ दो०-मेघनाद माया-मय,-रथ चढ़ि गयउ अकास । गर्जेउ अहहास करि, भइ कपि कटकहि त्रास ॥७२॥ मेघनाद माया के रथ पर चढ़ कर आकाश में गया और गर्जना कर के खूब जोर से हँसा, जिससे वानरी दल में भय उत्पन्न हुभा ॥ ७२ ॥ मेघनाद के माया भरे भीषण पराक्रम का परिचय बानरी सेना को हो चुका है, वह समझ कर शस छा गया 'स्मृति सम्वारी भाव' का प्र हो कर भय स्थायी भाव का वर्णन 'प्रेया झालंकार' है। चौ०-सक्ति सूल तरवारि रूपाना । अख सख्ख कुलिसायुध नाना ॥ डारइ परसु परिघ पाषाना । लागेउ वृष्टि करइ बहु बाना ॥१॥ घरची, त्रिशूल, तलवार, कटार आदि बन के समान शस्त्रास्त्र और अनेक प्रकार के हथियार फरसा, लोहवण्ड था पत्थर फेंकतो है, बहुत से बाणों की वर्षा करने लगा ॥१॥ दस दिसि रहे बान नभ छाई । मानहुँ सघा-मेघ झारि लाई । धरु धरु मारु सुनिय धुनि काना । जो मारइ तेहि काहु नजाना ॥२॥ भाकाय तथा दसों दिशाओं में बाण ला रहे हैं, ऐसा मालूम होता है मानो मघा नखत के