पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१००५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 रामचरितानस। मेघ ने झड़ी लगा दी हो। धरो धरो मारो की आवाज कान से सुन पड़ती है, पर जो मारता है उसे कोई नहीं जानता ॥२॥ गहि गिरितरूअकास कपिधावहिं । देखहिँ तेहि न दुखित फिरि आवहि । अवघट-घाट-बाट- -गिरि कन्दर । माया बल कोव्हेसि सर-पञ्चर ॥३॥ पहाड़ और वृक्ष ले ले कर बन्दर आकाश में उड़ जाते हैं, पर जब उसे नहीं देखते तब दुःखित हो कर लौट पाते हैं । अटपट चढ़ाव उतार के पहाड़ी मार्ग, साधारण रास्ता, पर्वत की शुफाएँ सर्वत्र माया के बल ले मेघनाद ने बाणों का पीजरा बना दिया ॥३॥ जाहिँ कहाँ व्याकुल अये बन्दर । खुरपति बन्दि परेउ जनु मन्दर ॥ मारुतसुत अहंद नल नीला । कीन्हेसि बिकल सकल बलसीला ॥१॥ बन्दर कहाँ जाँय ? (भागने को कही मार्ग ही न रहा ) वे ऐसे व्याकुल हुए मानों देव- राज की कैद में मन्दराचल पड़ा हो । पवनकुमार, अन्नद, नल और नील आदि सम्पूर्ण बल- शाली बन्दरों को व्याकुल कर दिया ॥ ४॥ पुनि लछिमन सुग्रीव बिभीषन । सरन्हि मारि कीन्हेसि जर्जर-तन ॥ पुलि रघुपति खन जूझइ लागा। सर छाड़ होइ लागहिँ नागा ॥५॥ फिर लक्ष्मण, जुत्रीव और विभीषण को वाणों से मार कर उनके शरीर को झाँझर (घावमय ) कर दिया। फिर रघुनाथजी से युद्ध करने लगा, जो बाण छोड़ता है वे सर्प हो कर लगते हैं ॥५॥ वाण सौ के कारण नहीं हैं, परन्तु धनुष ले छूटते ही वे साँप हो कर लगते हैं। यह 'चतुर्थ विभावना अलंकार' है। व्याल-पास-बस भये खारी । स्वबर अनन्त एक अबिकारी ॥ ना इक कपट चरित कर नाना। सदा स्वतन्त्र राम भगवाना.॥६॥ खलों के वैरी, स्वच्छन्द, अनादि, अहित्तीय और विकार रहित परमात्मा नाग-पाश के अधीन हो गये । वे नट के समान अनेक प्रकार के कपट चरित करते हैं; किन्तु भगवान रामचन्द्रजी लदा स्वतन्त्र (किसी के वश में नहीं होनेवाले ) हैं ॥६॥ रन लामा लगि प्रभुहि बँधाना । देखि दसा देवन्ह भयं पावा ॥ रण की शोभा के लिए प्रभु अपने से बँधुश्रा हो गये, यह दशा देख कर देवता डर को प्राप्त हुए ॥७॥ दो-गिरिजा जालु नाम जपि, मुनि काटहि भव पास । खो कि बनध तर आवइ, व्यापक बिस्व-निवास ॥७३॥ शिवजी कहते हैं-हे गिरिजा ! जिनका नाम जप कर मुनि लोग संसार-बन्धन को काट डालते हैं ये सर्वव्यापी जगनिवास परमात्मा क्या कभी बंधन के नीचे आ सकते हैं १ (कदापि नहीं) ॥७३॥ 1 1