पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०२

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ५१ सातों में रामचन्द्रजी की निर्गुण महिमा कथन, अगाधता है, जो सतप'च' चौपाई मैं १०५ या ५०० चौपाइयों को मुख्य गिना कर शेष को तुच्छ प्रदर्शित करते हैं वे कितना बड़ा अनर्थ । राम-सीय जस सलिल सुधासम । उपमा बीचि बिलास मनोरम ॥ पुरइन सघन चारु चौपाई । जुगुति मञ्जु मनि सीप सुहाई ॥२॥ रामचन्द्र और सीताजी का यश अमृत के समान मीठा जल है और मन को रमानेवाली उपमाएँ लहरों का आनन्द है । सुन्दर चौपाइयाँ धनी पुरइन (कमल पत्र) हैं और मनोहर युक्तियाँ मणि उत्पन्न करनेवाली सुहावनी सीपी है ॥२॥ जैसे लहरों को देख कर प्रसन्नता होती है, वैसे उपमानो से मनोविनोद होता है । जिस तरह कमलपत्र से जल ढंका रहता है, वैसे ही चौपाइयों में रामयश रूपी जल छिपाहै। मानस की सुन्दर सीपियों में मोती उपजती है, उसी तरह युक्ति रूपी सीपी में हरिचरित्र रूपी मनोहर मणि उत्पन्न होती है। छन्द सोरठा . सुन्दर दोहा । सोइ बहु रङ्ग कमल कुल साहा । अरथ अनूप सुभाव सुभासा । सोइ पराग मकरन्द सुबासा ॥३॥ सुन्दर, छन्द, सोरठा और दोहे बहुत रंग के कमलों के समुदाय शोभित हैं। अनुपम अर्थ सुन्दर भाव और अच्छी भाषा (वाणी) वह क्रमशः फूलों की धूलि, पुष्प-रस और सुहा- नेवाली सुगन्धि है ॥३॥ पहले अनुपम-अर्थ, सुभाव और सुभाषा कह कर फिर उसी क्रम से पराग, मकरन्द और सुगन्ध वर्णन करना 'यथा संख्य अलंकार' है। सुकृत पुज मजुल अलिमाला । ज्ञान बिराग बिचार मराला ॥ धुनि अवरेब कबित गुन.जाती। मीन मनोहर ते बहु भाँती ॥४॥ पुण्यों की राशि मनोहर भ्रमरों के झुण्ड हैं, शान, वैरोग्य और विचार राजहंस हैं। कविता को ध्वनि, वक्रोक्ति, गुण और जाति वे बहुत तरह की मनाहारिणी मछलियाँ हैं ||४|| जैसे फूलों पर उड़नेवाले भौंरे और मानसविहारी मराल सहज में दृष्टिगोचर होते हैं, वैसे धर्म सम्बन्धी बातें, विज्ञान, वैराग्यदि कथन सुगमता से प्रत्यक्ष होते हैं, किन्तु जैसे मछली पानी के भीतर रहती है, वह सवा और सहज में नहीं दिखाई देवी, वैसे काय की ध्वनि, वक्रोत्ति, गुण एवम् जाति ध्यान से विचारने पर प्रकट होती है। अरथ धरम कमादिक चारों । कहब ज्ञान बिज्ञान बिचारी ॥ नवरंस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तड़ागा ॥५॥ श्रर्थ, ध, काम, मोक्ष चारों फल और जो ज्ञान, विज्ञान, नवरंस, जप, तप, योग तथा वैराग्य विवार कर कहेंगे, वे सब सुन्दर तालाय के जलजीव हैं ॥५॥ काव्य के नव रस ये हैं-शृंगार, हास्य, करुण, रोह, वीर, भयानक, वीभत्स, श्रद्भुत और शान्त रसों की व्याख्या मानस-पिंगल में देखो।