पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०३५

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रामचरित मानस । फ़ौज में जहाँ जितते आलू बन्दर हैं, वहाँ उतने ही रावण प्रकट हुए ॥१॥ प्रत्येक वानर-मालुओं के समीप एक एक रोवण का होना वर्णन तृतीय विशेष अलंकार' है। देखे कपिन्ह असित दससीसा । जहँ तहँ भने भालु अरु कोसा ॥ भागे बानर धरहि न धीरा । त्राहि त्राहि लछिमन रघुबोरा ॥२' वन्दरों ने असंख्यों रावण देखे, भालू वानर जहाँ तहाँ भने । वानरे को धीरज छूट गया चे अधीर हो कर पुकारते हैं, लक्ष्मणजी रक्षा कीजिए: रघुनाथजी वचाइए ॥२॥ माया के रावण से वानर वीरों को अयथार्थ भय भयानक रसाभास है। बह-दिसि धावहि कोटिन्ह रावन । गर्जहिँ घोर कठोर मयावन । हरे सकल सुर चले पराई । जय के आस तजहु अब माई ॥३॥ दसों दिशाओं में करोड़ों रावण दौड़ रहे हैं, वे अत्यन्त कठिन मयर गर्जना करते हैं। लम्पूर्ण देवता डर कर भाग चले, आपस में कहते हैं-भाई ! अब जीत की प्राशा छोड़ दो ॥३॥ जिते एक दसकन्धर । अब बहु रहे विरञ्जि सम्भु मुनि ज्ञानी । जिन्ह जिन्ह प्रभु महिमा कछु जानी ॥४॥ अकेले रावण ने सब देवताओं को जीत लिया। श्रय बहुत से रावण हुए, इसलिए पर्वत की गुफाओं मै आश्रय लेना होगा। उनमें ब्रह्मा शिव और जो शानी मुनि थे, जिन जिन लोगों ने प्रभु रामचन्द्रजी की महिमा को कुछ जाना है ॥ ४॥ ऐक रावण ने सब देवताओं को जीत लिया, अब अनेक हो गये तव उसकी जीत में सन्देह ही क्या है ? 'काच्यार्थापत्ति अलंकार' है। हरिगीतिका-छन्द। जाना प्रताप ते रहे निर्भय, कपिन्ह रिपु माने फुरे । चले बिचलि मर्कटभालु सकल, कृपाल पाहि भयातुरे ।। हनुमान अङ्गद नील नल अत्ति, बल लरत रनबाँकुरे । मर्दहि दसानन कोटि कोटिन्ह, कपट-भू भट-अङ्कुरे ॥२२॥ जो प्रताप जानते थे वे निभय रहे, वन्दरों ने शत्रु को सत्य मान लिया । सब वानर भालू विबल कर भाग चले, वे भयभीत हो पुकारते हैं कृपालु रामचन्द्रजी रक्षा कीजिए।

अत्यन्त बलवान रण बाँकुरे हनूमान, अङ्गद नील और नल लड़ रहे हैं। करोड़ों करोड़ों

रावण भट को जो कपट कपो भूति से अँखुश्रा के समान उत्पन्न हैं, उन्हें मर्दन करते गिरि कन्दर ॥ भये तक 1 हैं ॥ २२॥