पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०३७

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९६२ रामचरित मानस । धनुष तान कर बहुत बाण बरसाने लगा । सम्पूर्ण वीरों को घायल कर के भयभीत कर दिया, फिर अपना बल देख फर प्रसन्न हुभा ॥२३॥ दो-तब्य रघुपति रावन के, लीस भुजा सर चाप । काटे बहुत बढ़े पुनि, जिमि तीरथ कर पाप ॥९॥ समरधुनाथजी ने रावण के सिर, भुजाएँ, धनुष और बाणों को काट गिराये। फिर वे इस तरह अधिक बढ़े जैसे तीर्थस्थान में किये हुए पाप बढ़ते हैं ॥१७॥ धर्मशास्त्र का मत है, कि "अन्य क्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं बालेपो भविष्यति" अर्थात् अन्य स्थान में किये हुए पाप तीर्थस्थलों में जाने से नष्ट होते हैं; पर जो पाप तीर्थस्थान में रह कर किये जाते हैं, वे वज्रलेप हो कर कदापि नहीं छूटते । चौध-सिर भुज बाढि देखि रिपु केरी। भालु कपिन्ह रिस भई घनेरी ॥ भरत ने मूढ़ कटेहु भुज सीसा । धाये कोपि भालु भट कीसा ॥१॥ शत्रु के सिर और भुजाओं की पाढ़ देख कर भालू-बन्दरों को बड़ा क्रोध हुआ कि यह सूर्स वाहु और मस्तक काटने पर भी नहीं मरता है, (इसका क्या कारण है!) योवा बन्दर और भालू शुद्ध हो कर दौड़े ॥१॥ सिर बाहु का कटना मृत्यु का कारण विद्यमान है किन्तु उसका फल (मृत्यु) न होना 'विशेषोक्ति अलंकार है। इस अद्भुत घटना को देख कर वानर भालुओं का चकित होना 'आश्चर्य स्थायीभाषा है बालि-तनय मारुति नल नीला । दुबिद कपीस पनस बलसीला॥ बिटपमहीधर करहिँ प्रहार। सोइ गिरि तरु गहि कपिन्ह सा मारा।॥२॥ वालिनन्हन, पवनकुमार, नला, नील, द्विविद, सुग्रीव और पनस आदि बलशाली योडा उस पर वृक्ष और पहाड़ चला कर चोट करते हैं, रावण उन्हीं पर्वतों और वृक्षों को पकड़ कर बन्दरों को मारता है ॥२॥ एक लखन्ह रिपु-जपुष-बिदारी । मागि चलहिँ एक लातन्ह मारी। तब नल नील सिरन्ह चाढ़ि गयऊ । नखन्हि लिलार बिदारत भयऊ ॥३॥ कोई नखों से शत्रु की देह फाड़ कर कोई लातों से मार कर भाग जाते हैं। तब नल नील रावण के सिरों पर चढ़ गये और नाखने से उसका मस्तक चीर डाला ॥३॥ नल नील के. ललाट चीरने में ध्वनि व्यञ्जित होती है कि सुनने में आया है रावण की मृत्यु मनुष्य और बन्दरों के हाथ ब्रह्मा ने लिखी है, पर रधुनाथजी के बाणों से सिर भुज बार बार फटने तथा बन्दरों के मारने से मरता नहीं है ! फिर कैसे मरेगा ? कपाल में देखू तो सही। रुधिर बिलाकि सकोप सुरारी। तिन्हहिं धरन कह भुजा पसारी॥ गह न जाहिँ करन्हेिं पर फिरहीं। जनु जुग मधुप कमल बन चरहीं॥४॥ रक्त देन कर रावण क्रोध से उन्हें पकड़ने के लिए पाहु फलाया। परन्तु वे पकड़े नहीं ,