पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ५३ 'प्रभागा' में शादी व्यंग है कि उनका भाग विषय-चर्चा घोंधे, मेढक आदि विषयी प्राणियों को मानस के समीपन आ सकने में हेतुसूचक कारण दिखा कर अर्थ समर्थन करना 'कालिग अलंकार' है। तेहि कारन आवत हिय हारे । कामी का बलाक बिचारे । आवत एहि सर अति कठिनाई । राम कृपा बिनु आइ न जाई ॥३॥ इसी कारण बेचारे कौए और बगुले रूपी विषयी प्राणी यहाँ आते हुए हृदय में हार जाते हैं। हम सरोवर के समीप श्राने में बड़ी कठिनता है, विना रामचन्द्रजी की कृपा से माया नहीं जाता ॥३॥ कठिन कुसङ्ग कुपन्थ कराला । तिन्ह के बचन बाघ हरि व्याला ॥ गृह कारज नाना जञ्जाला । तेइ अति दुर्गम सैल बिसाला wu कठिन कुसमीपण चुरा रास्ता है और उम (कुलशियों) के वनन व्याघ, सिंह और सर्प (मार्ग के वाधा रूप) हैं। नाना प्रकार के गृह-कार्यो की उलझन अत्यन्त अगम और विशाल पर्वत है ॥ बन बहु विषम मोह मद माना । नदी कुनक भयङ्कर नाना ॥५॥ मोह, मद और अभिमान बड़ा भीषण जङ्गल है, नाना प्रकार के वितण्डावाद भयङ्कर नदियाँ हैं ॥५॥ दो-जे सदा सम्बल रहित, नहिँ सन्तन्ह कर साथ । तिन्ह कहँ मानस. अगम अति, जिन्हहि न प्रिय रघुनाथ ॥३८॥ जो श्रद्धा कपी राहख़र्च से खाली हैं, जिन्हें सन्तों का साथ नहीं और रघुनाथजी मिय नहीं, उनके लिए मानस में पहुँचना कठिन है ॥३॥ मानसयाना के रास्ते में बड़ा भीषण जंगल, पहाड़, और नदियाँ पड़ती हैं और व्याघ्र,सर्प आदि तरह तरह के हिंसक जीव मिलते हैं जिनका वर्णन ऊपर हो चुका है। या तों काफी खर्च हो अथवा किसी धनी अमीर का साथ हो, तब उस विस्ट मार्ग को जानवाला तय कर सकता है। उसी तरह रापचरितमानस में आने के लिए श्रद्धासपी राहतूचं हो या सन्त रूपी धनवानों का संग हो अथवा रघुनाथजो जिसे प्यारे हैं।, वही श्रा सकता है अन्यथा नहीं। चौ० जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई । जातहि नौंद जुड़ाई होई ॥ जड़ता जाड़ विषम उर लागा । गयहुन मज्जन. पाव अभागा ॥१॥ फिर विषयी मनुष्यों में यदि कोई कष्ट उठा कर जाय भी तो उसको नींद रूपी जड़या होती है। उसके हृदय में मूर्खता रूपी भीषण जाड़ा लगता है, जिससे वह अभागा जा कर भी स्नान नहीं कर पाता ॥१॥