पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१०७

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५६ रामचरित मानसे । यहाँ अधिक अभेदरूपक का भाव है, क्योंकि सरयू नदी स्नान करने पर पवित्र करती है, किन्तु कविना नदी सुनते ही शुद्ध कर देती है। रामचरितमानस के गोव चीन में अन्य अनोखी कथाएँ, जैसे सनी का माह और तन. त्याग, नारदमोह, भानुप्रताप का सर्वनारा, रावणजन्म और दिग्विजय प्रादि भोषण पन रूप हैं। याज्ञवल्क्य भर द्वाज सम्गद, पार्वतीजन्म, शिव पार्वती विवाह एवम् सम्बाद, सायम्भुव मनु की तपश्चर्या, कागभुशुण्ड-गरुड़ सम्बाद इत्यादि वाग रूपी सुखद सुहावनी कथाएँ हैं। उमा-महेस-बिबाह बराती। ते जलचर अगनित बहु भाँती । रघुबर-जनम अनन्द-बधाई । भँवर तरङ्ग मनोहरताई ॥ शिव-पार्वती के विवाह में वरातियों की कथाएँ बहु प्रसार के असंख्यों जलजीव के समान हैं । रघुनधिजी के जन्न का आनन्द भंवर है और यधावा लहरों की सुन्दरता है ॥ ४ ॥ भँवर में जो पड़ता है, वह एक ही स्थान में चार खाना रहता है, इस भैंघर में पर कर एक मास पर्यन्त सूर्य एक ही स्थान में ठहरे रहे पर किसी ने जाना नहीं । गृह गृह के पाजे पधावे शुभ-तरङ्ग हैं। दो-बालचरित नहुँ बन्धु के, बनज बिपुल बहु रङ्ग । भूप-रानी-परिजन सुकृत, मधुकर चारि ग्रिहण ॥४०॥ लागे भाइयों के यालचरित्र बहुत रंग के असंख्यों कमल हैं। राजा और रानी के सुकृत भ्रमर और कुटुम्दीजनों के पुण्य जलपक्षी के समान है॥४॥ भ्रमर पुष्परस पान करता है, इसलिये राजा रानी के मधुकर की ममता और जल-वित जल थल दोनों में विहार करते हैं, अतः परिजनों का विहन की समता क्रम से दी गयी है। चौ०-सीय-स्वयम्बर-कथा सुहाई । सरित सुहावनि सो छबि छाई । नदी नाव पदु प्रस्न अनेका । केवट कुमल उनर सबिधेका ॥१॥ सीताजी के स्वयम्बर की सुहावनी कथा इस नती की मनोहर शोमा फैन रही है। अनेक प्रकार के सुन्दर (दक्षतापूर्ण) प्रश्न इस नदी को नौकाएँ और कुशलता पूर्वक जानकारी के साथ उत्तर ही मलाह है।॥१॥ सुनि अनुकथन परसपर होई । पथिक-समाज साह सरि साई ॥ घोर धार भृगुनाथ रिसानी । घाट सुबन्ध राम बर सुन कर पीछे जो आपस में कहा सुनी होती है, वही इस नदी के (पार जानेवाले) यात्रियों का समूह सोहरहा है। परशुरामजी का रिसियाना भरकर धारा है और रामच न्द्रजी की सुन्दर वाणी अच्छा वैधा हुआ (पक्का) घाट है ॥२॥ . बानों ॥२॥ $