पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११००

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ilta सप्शन सोपाल, उत्तरकाबाट । - १०२९ स्पष्ट शब्दों में यह म कह कर कि किष्किन्धा का राजा श्राप ने सुग्रीव को बनाया है, उनके वंशज राज्य करेंगे मेरा वहाँ जाना व्यर्थ है। यों कहा कि भाप अशरण शरण भल हितकारी हैं मेरा त्याग न कीजिये 'प्रथम पर्यायोक्ति अलंकार है। तुम्हहि बिचारि कहहु नरनाहा । अनु तजि भवन काज सम काहा बालक ज्ञान बुद्धि बल हीना । राखहु सरल नाथ जन दीना ॥३॥ हे नरनाथ श्राप ही विचार कर कहिये, स्वामी को छोड़ घर में मेरा कौन सा काम 'है ? हे स्वामिन् ! पालक, शान, बुद्धि और बल से रहित मुफ दीन जन को शरण में रखिये ॥३॥ सभा की प्रति में 'शखहु लरन जानि जन हीना' पोट है! नीचि दहल गृह के सब करिहौँ । पद-पङ्कज शिलोकि शव तरिहौँ । अस कहि चरन परेउ प्रसपाही । अब जनि नाथ कहहु गृह जाही॥४॥ घर की सप नीच सेवा काँगा और श्रीचरण-कमलों को निहार कर संसार से पार हो जाऊँगा। ऐसा कह फर चरणों पर गिर पड़े और कहा-स्वामिन् । मेरी रक्षा कीजिये, हे नाथ ! अब मुझे घर जाने के लिये न कहिये ॥२॥ भाजद के वाक्यों में लक्षणामूलक गूढ़ व्या है कि यहाँ नीच टहल करते हुए भी स्वामी के चरण के दर्शन कर संसार-सागर से पोर पा जाऊँगा और किधिकरधा में जाकर राज को दुसरों खासर खूला की भाँति जीवन व्यर्थ गैंदाना पड़ेगा, स्वार्थ परमार्थ दोनों से हाथ धेो चैटूगा। संसार से तरने की इच्छा से तुच्छ टहल को गुण मानना 'अनुशा अलंकार है। दोष-अङ्गद बचन विनीत सुनि, रघुपति करुला सीव । प्रभु उठाइ उर लायेउ, सजल नयन राजीव ॥ दया के हर रघनाथजी ने शाद के ता युक्त वचन सुन कर उन्हें उठा कर हदय से लगा लिया और प्रभु के कमल नयनों में जल भर आया। निज उर लाल बसन सनि, खालि-तनय पहिराई ॥ बिदा कीन्ह अगवान तक, बहु प्रकार समुझाइ ॥१८॥ अपने हदय की मणियों की माला और वस्त्र बालिकुमार को पहनाकर तथा धन तरह से समझा कर तब भगवान रामचन्द्रजी ने अङ्गद को बिदा लिया ॥१॥ अङ्गद के नवनों में अभिप्राय सूचक चेष्टा को समझ कर रामचन्द्रजी ने अपने अङ्ग के आभूषण और वस्त्र पहना कर इस सकेत से अजाद का समाधान किया कि तुम मेरे दिये राज- चिह्नों को धारण कर किष्किन्धा में जायो । मेरे किये हुए निर्णय को सुग्रीव कदापि न टालेंगे 'सूक्ष्म अलंकार' है। चौ०-भरत अनुज सौमित्रि समेता। पठवन चले मगत कृतचेता ॥ अङ्गद हृदय प्रेम नहि थोरा। फिरि फिरिचितब राम की ओरा॥१ भरत, शत्रुहन और लक्ष्मण के सहित रामचन्द्रजी भकों के किये हुए कार्य का स्मरण