पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११०९

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१०३० रामचरित मानस को धेरै हो । पृथ्वी पर काँच (शीशा) के बहुत रस के चबूतरे घनाये हैं, जिन्हें देख कर मुनिवरों के मन प्रसन्न हो जाते हैं ॥३॥ करे और नवग्रहों को लेना, अयोध्या और इन्द्रपुरी परस्पर उपमेय उपमान है । मुख्य तात्पर्य तो कारों के वर्णन से है, परन्तु कविजो अपनी कल्पना से पाठकों का ध्यान बल. पूर्वक खींच कर नवग्रहों की सेना के घेरे में पड़ी हुई इन्द्रपुरी की ओर लिये जा रहे हैं । यह 'अनुक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है । गुटका में जो विलोकि मुनि पर मन नाँचा' पाठ है। धवल धाम ऊपर नल चुम्नत्त । कलस मनहुँ रबि ससि दुति निन्दत ॥ बहुमनिरचिताराग्वाभाजहिँ । गृह गृह प्रति मनि दीप बिराजहिं ॥४॥ श्वेत मन्दिर ऊपर नाकाश चूप रहे हैं, उन पर बने हुए कलश ऐसे मालूम होते हैं माने सूर्य और चन्द्रमा की कान्ति का तिरस्कार करते हों। बहुत से रनों से जड़ी हुई खिड़कियाँ शोभायमान है, प्रत्येक घरों में मणियों के दीपक विराजते हैं ॥४॥ हरिगीतिका-छन्द। मनि दीप राजहिँ भवन भाजहिँ , देहरी । बिद्रुम रची। मनि खम्म भीति बिरञ्जि मिरची, कनक मनि मरकत खची॥ सुन्दर मनोहर मन्दिरायत, अजिर रुचिर फटिक रचे । प्रति द्वारद्वार कपाट-पुस्ट बनाइ बहु बजन्हि खचे ॥१३॥ मन्दिरों में मणियों के दीपक विराजते हैं और बार के चौखट मूंगा के बने हैं। मणियों के खम्भे, सुपर्ण और नीलमणि से जड़ी हुई दीवारें ऐसी सुहावनी बनी हैं मान ब्रह्मा ने बनाया हो । विशाल मन्दिर सुन्दर मन को हरनेवाले हैं, उनकी अँगनाई स्फटिक पत्थरसे बनी शोभनीय है। प्रत्येक द्वार की किवाड़ें सुवर्ण की बना कर उन पर बहुत से हीरे जड़े हैं ॥१३॥ दो० for-चारू चित्रसाला गृह, गृहप्रति लिखे बनाई। रामचरित जे निरख मुनि, ते मन लेहि चोराइ ॥२०॥ घर घर में सुन्दर चित्रशालायें बना कर लिखी हैं। उनमें रामचन्द्रजी के चरित्र की घट- नाएँ अड़ित हैं, जो मुनि देखते हैं वे तसवीरे उनके मन को चुरा लेती हैं ॥ २७ ॥ चौ०--सुमन-बाटिका सबहि लगाई। विविध भाँति करि जतन बनाई। लता ललित बहु जाति सुहाई। फूलहिँ सदा बसन्त कि नाई ॥१॥ सभी ने फुलवारियाँ लगाई हैं, अनेक तरह के उपाय करके उन्हें सजाया है। बहुत जाति की सुन्दर मुहावनी लताएं जो वसन्त-ऋतु के समान फूलती हैं ॥ १ ॥ गुंजत मधुकर मुखर मनोहर । मारुत त्रिविधि सदा बह सुन्दर । नाना खग बालकन्ह जिआये । बोलत मधुर उड़ात सुहाये ॥२॥ मनोहर शन्नों से भंवर गुजारते हैं और सदो तीनों प्रकार के सुन्दर पवन बहा