पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/११४५

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१०६६ रामचरित मानस। दो०-सेतु बाँधि कपि सेन जिमि, उतरी सागर पार। गयउ बसीठो बोर बर, जेहि बिधि बालिकुमार ॥ जिस तरह समुद्र में पुल बाँध कर वानरों की सेना पार उतरी और जिस प्रकार श्रेष्ठ वीर बालिकुमार दूत हो कर गये, वह कहा निलिवर कीस लराई, बरनेसि बिबिध प्रकार । कुरूमकरन घननाद कर, बल पौरुष संहार ॥६॥ राक्षस और बन्दरों की लड़ाई भनेक प्रकार से वर्णन की, फिर कुम्भकर्ण और मेघनाद के यल-पुरुषार्थ का संहार वर्णन किया ॥६७॥ चौ०-निलिचर निकर सरन विधिनाना । रघुपति रावन समर बखाना॥ राबन बध मन्दोदरि सोका । राज बिभीषन देव असेोका ॥१॥ नाना प्रकार से राक्षसों के समुदाय का मरण कहा, रघुनाथजी और रावण का युद्ध वर्णन किया । रावण का वध, मन्दोदरी का शोक और विभीषण को शोकरहित राज्य देना कहा ॥१॥ सीता रघुपति मिलन बहोरी । सुरन्ह कोन्हि अस्तुति कर जोरी ॥ पुनि पुष्पक चढ़ि पिन्ह समेता । अवध चले प्रभु कृपानिकेता ॥२॥ फिर सीताजी और रघुनाथजी का मिलाप कहा, देवताओं ने हाथ जोड़ कर स्तुति की फिट पुष्पक विमान पर बानरों के सहित चढ़ कर कृपानिधान प्रभु रामचन्द्रजी अयोध्यापुरी को चले, वह लव वर्णन किया ॥२॥ जेहि बिधिराम नगर निज आये। बायस बिसद चरित सब गाये ॥ कहेसि बहोरि राम अभिजेका । पुर बरनन नृपनीति अनेका ॥३॥ जिस तरह रामचन्द्रजी अपने नगरमें श्राये, वह सब निर्मल चरित्र कागभुशुण्ड ने गाया। फिर रामचन्द्रजी का राज्याभिषेक, नगर,वर्णन और अनेक प्रकार की राजनीति को कहा ॥३॥ कथा समस्त भुसुंडि बखानी । जो मैं तुम्ह सन कही भवानी ॥ सुनि. सन रामकथा खगनाहा । कहत बचन मन परम उछाहा ॥४॥ शिवजी कहते हैं हैं भवानी ! वह सारी कथा भुपण्डो ने वर्णन को जो मैं ने तुम से कही है। रामचन्द्रजी की.सम्पूर्ण कथा सुन कर पतिराजे मन में अत्यन्त उमहित होकर वचन कहने लगे ॥ सो०-गयउ मार सन्देह, सुनेउँ सकल रघुपति चरित । भयउ राम-पद नेह, तव प्रसाद बायस-तिलक । रघुनाथजी का सम्पूर्ण चरित सुन कर मेरा सन्देह दूर हो गया। हे कागों के शिरोभूषण भाप की कृपा से रामचन्द्रजी के चरणों में स्नेह हुआ।