पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१२०३

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११२४ रामचरित मानस । होइ बुद्धि जाँ परम सयानी । तिन्ह तन चितवन अनहित जानी ।। जौ तेहि विघन बुद्धि नहिँ बाधी। तो बहारि सुर करहिँ उपाधी ॥५॥ यदि अत्यन्त चतुर बुद्धि हुई तो उन (ऋद्धि-सिद्धियों) की ओर अपना अनमल करने. वाली जान कर नहीं निहारती । यदि मायाकृत विघ्न बुद्धि को बाधा नहीं पहुँचा सके तो फिर देवता उपद्रव करते हैं ॥५॥ इन्द्री द्वार झरोखा नाना । तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना । आवत देखहि विषय जयारी । ते हठि देहिँ कपाट उघारी ॥६॥ इन्द्रियाँ नाना दरवाजे और भरोस्ने के समान हैं, वहाँ वहाँ देवता स्थान बना कर बैठे हैं। वे विषय रूपी बयारि को भाती देख कर हठ से किवाड़ खोल देते हैं ॥क्षा पाँच ज्ञानेन्द्रिय पार पाँच कर्मे न्द्रिय इस तरह इन्द्रियाँ दस हैं । वेदान्तियों ने चार अन्तरे' न्द्रियों के सहित चौदह इन्द्रियाँ मानी हैं। जिनसे केवल विषयों का अनुभव होता है वे ज्ञानेन्द्रिय कहाती हैं यथा-श्राँस, कान, नाक, जीभ और त्वचा जिनके द्वारा विविध कम किये जाते हैं वे कमें न्द्रिय कहाती हैं यथा-वाणी, हाथ, पाँव, गुदा और लिह । इनके विषय क्रमशः रूप, शब्द, गन्ध, स्वाद, स्पर्श, बोलना, पकड़ना, चलना, मलत्याग, मूत्र त्याग और मैथुन हैं। इनके अतिरिक मन, बुद्ध, वित्त, अहंकार अन्तरेन्द्रिय हैं। सब के पृथक पृथक देवता हैं। आँख के देवता स्य', कान के दिशा, नाक के भश्विनीकुमार, जीम के वरुण स्वधा के पवन, वाणी के अग्नि, हाथ के इन्द्र, पाँव के विष्णु, गुदा के यम, लिङ्ग के प्रजापति, मन के चन्द्रमा, बुद्धि के ब्रह्मा, वित्त के अच्युत और अहङ्कार के देवता रुद्र हैं जब सो प्राञ्जन उर गृह जाई । तबहिं दीप बिज्ञान बुझाई । ग्रन्थि न छूटि मिटा सो प्रकासा । बुद्धि बिकल भइ बिषय यतासा॥७॥ जब वह हवा हदय रूपी मन्दिर में जाती है, तभी विज्ञान रूपी दीपक बुझ जाता है। गाँठ छूटी नहीं और वह उजेला मिट गयो, विषय रूपी वायु से बुद्धि विकल हो गई ॥७॥ इन्द्रिन्ह सुरन्ह न ज्ञान सुहाई । विषयभोग पर प्रीति सदाई। विषय-समीर बुद्धि कृत भारी । तेहि बिधि दीप को बार बहारी॥ इन्द्रियों के देवताओं को शान नहीं अच्छा लगता, उनकी विषयों के भोगने पर सदा ही प्रीति रहती है । विषय रूपी बयारि के किये जब चुद्धि भुला गई, तब फिर उसी तरह दीयक को कौन जला सकता है | दो-तब फिरि जीव विविध बिधि, पावइ संसृति क्लेस । हरि माया अति दुस्तर, तरि न जाइ बिहँगेस ॥ वच यह जीप नाना तरह की 'संसार की योनियों में फिर कर कर पाता है। हे पनि राजा भगवान की माया बड़ी दुस्तर है,वह पार नहीं की जा सकती। ।