पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१६०

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। प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १०७ भागि भवन पैठी अति त्रासा। गये महेस जहाँ जनवासा॥ मैना हृदय अयउ दुख मारी। लीन्ही बोलि गिरीस-कुमारी ॥३॥ अत्यन्त भय से भाग कर घर में घुस गई और जहाँ जनवासा था वहाँ शिवजी गये। मैना के हृदय में बड़ा भारी दुःख हुश्रा, उन्होंने पार्वतीजी को बुला लिया ॥३॥ अधिक सनेह गोद बैठारी। स्याम-सरोज नयन भरि बारी ॥ जेहि बिधि तुम्हहिँ रूप अस दीन्हा । तेहि जड़ बर बाउर कस कीन्हा॥४॥ अधिक स्नेह से गोद में बैठा कर श्याम-कमल के समान नेत्रों में आँसू भर कर कहने लगी-जिस ब्रह्माने तुमको ऐसी सुन्दरता दी, उस मृख ने बर पागल क्यों बनाया ? ॥४॥ हरिगीतिका-छन्द । कस कीन्ह बर बौराह बिधि जेहि, तुम्हहिँ सुन्दरता दई । जो फल चहिय सुरतरुहि सो, बरबस बबूरहि लागई। तुम्ह सहित गिरि तें गिरउँ पावक, जरउँ जलनिधि महँ परौं । घर जाउ अपजस होउ जग, जीवत बिबाह न है करौं ॥१०॥ जिस विधाता ने तुम्हें ऐसी सुन्दरता दी, उसने बर काहे को बौरहा बनाया ? जो फल कल्पवृक्ष में लगना चाहिये, वह घरजोरी से बवूर में लग रहा है । तुम्हारे सहित मैं पहाड़ से गिऊँगी, आग में जलूँगी.या समुद्र में कूद पडूगी, घर भले ही उजड़ जाय, संसार में अपकीर्ति हो, पर मैं जीते जी विवाह न फऊँगी ॥१०॥ इस छन्द में मैना को कहना तो यह अभीष्ट है कि ऐसी रूपवती कन्या को सुन्दर रूप- वान् वर मिलना था वह न मिला। विकट मसानी वेष का पति मिला! पर इस बात को सीधे न कह कर उसका प्रतिबिम्ब मात्र कहना जिससे नसली बात प्रगट हो कि जो फल कल्पतरु में लगना था, वह वदूर में लगा 'ललित अलंकार है। दो०.-मई बिकल अबला सकल, दुखित देखि गिरि-नारि । करि बिलाप रोदति बदति, सता सनेह संभारि ॥६॥ मैना को दुलो देख कर सारी स्त्रियाँ व्याकुल हो गई। वे लड़की की सुधिकर स्नेह के मारे रोती, चिल्लाती और विलाप करती हैं ॥६॥ शङ्का-मैना पहले ही नारद और हिमवान् के द्वारा शिवजी के रूप को सुन चुकी थी, फिर इतना डर उन्हें क्यों हुआ जब कि उन्हों ने उक्त बर प्राति के लिये कन्या को तपस्या करने का आदेश किया ? उत्तर-मानस प्रकरण में कह पाये हैं कि कविता नदी के लोक- मत और वेदमत दो किनारे हैं। यहाँ नदी की धारा लोकमत के किनारे से लग कर चल रही है। स्त्री का स्वभाव भीरु और चञ्चल होता है । भीषण वेष देख कर पहले की कही- सुनी बात मैना को भूल गई। वे पुत्री के स्नेह में विह्वल हो उौं। फिर इस घटना-सम्बन्ध से पार्वतीजी की अनन्त महिमा सब लोगों पर व्यक्त करना कवि को अभीष्ट है।