पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/१८८

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{ प्रेथम सोपान, बालकाण्ड । १३३ कस्यप अदिति तहाँ पितु माता । दसरथ कौसल्या बिख्याता ॥ एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित पवित्र किये संसारा ॥२॥ कश्यप और अदिति यहाँ पिता-माता दशरथ और कौसल्या के नाम से प्रसिद्ध थे। एक कल्प में इस प्रकार जना ले कर अपने चरित्र से संसार को पवित्र किया ॥३॥ एक कलप सुर देखि दुखारे । समर जलन्धर सन सब हारे । सम्भु कीन्ह सङ्काम अपारा । दनुज महाबल मरइ न मारा ॥ ३ ॥ एक कल्प में जलन्धर दैत्य से सब देवता युद्ध में हार गये, उनको दुखी. देख कर याश- वल्क्यजी कहते हैं-शिवजी ने घोर संग्राम किया, पर वह महाबली दैत्य मारे नहीं मरा ॥२॥ परम-सती असुराधिप-नारी । तेहि बल ताहि न जितहिँ पुरारी ॥४॥ दैत्येश्वर की स्त्री परम सती (पतिव्रता ) थी, उसके बल से शिवजी जलन्धर को नहीं जीत सकते थे ॥४॥ दो०-छल करि टारे तासु ब्रत, प्रभु सुर कारज कीन्ह । जब तेइँ जानेउँ मरम तब, साथ कोप करि दीन्ह ॥ १२३ ॥ प्रभु ने छल कर के उसकी स्त्री (वृन्दा) का पतिव्रत-धर्म भङ्ग कर देवताओं का कार्य किया। जब उसने यह भेद जान लिया, तब क्रोध कर के शाप दिया ॥ १२३ ॥ चौo-तासु साप हरि कीन्ह प्रधाना । कौतुक-निधि कृपाल अगवाना ॥ तहाँ जलन्धर रावन भयऊ । रन हति राम परम-पद दयऊ ॥१॥ उसके शाप को कौतुकनिधान कृपालु हरि भगवान ने सत्य किया। वहाँ जलन्धर रावण हुआ, रामचन्द्रजी ने रण में वध कर के उसको परम पद दिया ॥१॥ एक जनम कर कारन एहा । जेहि लगि राम धरी नर-देहा ॥ प्रति अवतार कथा प्रभु केरी । सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी ॥२॥ एक जन्म का कारण यह है जिसके लिए रामचन्द्रजी ने मनुष्य देह धारण किया था। याज्ञवल्क्यजी कहते हैं- हे भरद्वाज मुनि ! सुनिए प्रभु के प्रत्येक अवतार की कथा को कवियों ने विस्तार से वर्णन की है ॥ २ ॥ दो बार जन्म लेने का कारण कह चुके, अव तीसरे अवतार का हेतु वर्णन करते हैं। नारद साप दीन्ह एक बारा । कलप एक तेहि लगि अवतारा ॥ गिरिजा चकित भई सुनि बानी । नारद बिष्नु भगत पुनि ज्ञानी ३॥ एक बार नारदजी ने शाप दिया उसके लिए एक कल्प में अवतार हुआ । यह बात सुन कर पार्वतीजी चकपका गई और बोलीं-नारद तो विष्णु-भक्त और झोनी हैं ? ॥ ३ ॥ .