पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२०२

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १४७ चौ०--एहि बिधि जनम करम हरि केरे । सुन्दर सुखद बिचित्र घनेरे । कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं । चारु चरित नाना विधि करहीं ॥१॥ इस प्रकार भगवान के जन्म, कर्म बहुत ही सुन्दर, सुखदायक और विलक्षण हैं। हर एक कल्प में भगवानजी जन्म लेते हैं और नाना तरह के रमणीय चरित्र करते हैं ॥१॥ तब तब कथा मुनीसन्ह गाई । परम पुनीत प्रबन्ध बनाई ॥ बिबिध प्रसङ्ग अनूप बखाने । करहिँ न सुनि आचरज सयाने ॥२॥ तब तब मुनीश्वरों ने अत्यन्त पवित्र कथा-अबन्ध बना कर गाया है । नाना प्रकार के अनुपम प्रसंग वखाने हैं, उनको सुनकर चतुर लोग आश्चर्य नहीं करते ॥२॥ हरि-अनन्त हरि-कथा-अनन्ता । कहहिं सुनहि बहु बिधि सब सन्ता ॥ रामचन्द्र के चरित सुहाये । कलप कोदि लगि जाहिँ न गाये ॥३॥ हरि अनन्त हैं और हरि की कथा अनन्त है, सबसन्त लोग बहुत प्रकार कहते सुनते हैं। रामचन्द्रजी के सुहावने चरित्र करोड़ों कल्पपर्यन्त गाये नहीं जा सकते ॥३॥ यह प्रसङ्ग मैं कहा भवानी। हरि-माया मोहहिँ मुनि ज्ञानी । प्रभु कौतुकी प्रनत-हितकारी । सेवत सुलभ सकल-दुख-हारी ॥४॥ शिवजी कहते हैं-हे भवानी ! भगवान की माया से ज्ञानीमुनि मोहित हो जाते हैं। यह प्रसंग मैंने कहा । प्रभु रामचन्द्रजी भक्तों के हित करनेवाले खिलाड़ी हैं । सेवा करने में सुगम और सम्पूर्ण दुःखों के हरनेवाले हैं ॥४॥ सोय-सुर नर मुनि कोउ नाहिँ, जेहि न माह माया प्रबल । अस बिचारि मन माहि, भजिय महा-माया-पतिहि ॥१४॥ देवता, मजुम्म और मुनियों में कोई ऐसा नहीं है कि जिसको बलवती माया मोहित न करती हो। ऐसा मन में विचार कर विशाल मायाधीश का भजन करना चाहिए ॥१४॥ ईश्वर का भजन करना चाहिए, वे माया के स्वामी हैं। उनकी माया इतनी जबदस्त है कि देवता, मुनि और मनुष्य सब उसके अधीन हैं। इस लिए मायाधिपति की उपासना से माया बाधक न होगी। युक्ति से ईश्वर भजन का समर्थन 'काव्याला अलंकार' है। चौ०-अपर हेतु सुनु सैलकुमारी। कहउँ बिचित्र कथा बिस्तारी ॥ जेहि कारन अज अगुन अरूपा । ब्रह्म भयउ कोसलपुर-भूपा ॥१॥ शिवजी कहते हैं-हे शैलकुमारी ! सुनो, अन्य कारण की विलक्षण कथा विस्तार से कहता हूँ। जिस कारण अजन्मे, निर्गुण और अपरहित ब्रह्म अयोध्यापुरी के राजा हुए ॥१॥