पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२०३

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१४८ रामचरित मानस । जो प्रभु बिपिन फिरत तुम्ह देखा । बन्धु समेत धरे मुनि बेखा ॥ जासु चरित अवलोकि भवानी । सती सरीर रहिहु बौरानी १२५ जिन स्वामी को भाई के सहित मुनिवेश धारण किए तुमने वन में फिरते देखा था। हे भवानी! जिनका चरित देखकर सती के शरीर में तुम पगली हो गई थीं ॥२॥ अजहुँ न छाया मिटति तुम्हारी। तासु चरित सुनु भ्रम-रुज-हारी ॥ लीला कीन्हि जो तेहि अवतारा । सो सब कहिहउँ मति अनुसारा ॥३॥ अय भी तुम्हारी छाया नहीं मिटती, भ्रम रूपी रोग को हरनेवाला उनका चरित सुनो।' उस अवतार में जो लीलाएँ की थीं, वे सब मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहूँगा ॥३॥ भरद्वाज सुनि सङ्कर बानी । सकुचि सप्रेम उमा हरषानी। लगे बहुरि बरनइ वृषकेतू । सो अवतार भयउ जेहि हेतू ॥ १ ॥ याज्ञवल्क्यमुनि कहते हैं-हे भरद्वाज! शङ्कर की वाणी सुनकर पार्वतीजी सकुचा कर प्रेम से प्रसन्न हुई। फिर वह अवतार जिस कारण हुश्रा, उसको शिवजी कहने लगे दो-सा मैं तुम्ह सन कहउँ सब, सुनु मुनीस मन लाइ । रामकथा-कलिमल-हरनि, मङ्गल-करनि सुहाइ ॥१४१॥ हे मुनीश्वर! वह सब मैं आप से कहता हूँ, मन लगाकर सुनिए। रामचन्द्रजी की कथा कलि के पापों को हरनेवाली और सुन्दर महल करनेवाली है ॥१४॥ चौल-स्वायम्भुव-मनु अरु सतरूपा । जिन्ह तँ मइ नर सृष्टि अनूपा । दम्पति घरम-आचरन नीका । अजहुँ गाव सुति जिन्ह कै लीका ॥१॥ राजा स्वायम्भुवमनु और महारानी शतरूपा जिनसे अनुपम मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है, उन दोनों पति-पत्नी के धर्माचरण श्रेष्ठ थे, जिनकी मर्यादा का गान अब भी वेद करते हैं ॥१॥ नृप उत्तानपाद सुत तासू । ध्रुव हरि-भगत भयउ सुत जासू॥ लघु सुत नाम प्रियव्रत ताही । बेद पुरान प्रसंसहिँ जाही ॥ २॥ उन राजा के उत्तानपाद पुत्र हुए, जिनके पुत्र हरिभक्त ध्रुव हुए हैं। राजा स्वाय- म्भुव मनु के छोटे लड़के का नाम प्रियवत्त था जिनकी वड़ाई वेद पुराण करते हैं ॥२॥ देवहूति पुनि तासु कुमारी । जो मुनि-कर्दम के प्रिय नारी॥ आदिदेव प्रभु दीनदयाला । जठर धरेउ जेहि कपिल कृपाला ॥३॥ फिर उन (स्वायम्भुवमनु) की कन्या देवति जो कर्दम ऋषि की पत्नी दुई। जिसने आदिदेव दीनदयाल कृपालु प्रभु कपिल भगवान को अपने गर्भ में धारण किया ॥३॥