पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२०४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । सांख्यसास्त्र जिन्ह प्रगट गखाना । तत्व बिचार निपुन भगवाना ॥ तेहि मनु राज कीन्ह बहु काला । प्रभु आयसु सब विधि प्रतिपाला ॥४॥ जिन्होंने सांव्यशास्त्र, वर्णन कर प्रकट किया, कपिल भगवान् तत्वविचार (यथार्थ वस्तु के निर्णय ) में बड़े प्रवीण हुए। उन्हीं राजा मनु ने बहुत काल तक राज्य किया और सब तरह ईश्वर की श्राशा का पालन किया ॥४॥ सो०-होइ न बिषय बिराग, भवन बसत भा चौथ पन । हृदय बहुत दुख लाग, जनम गयड़ हरिभगति बिनु ॥१४॥ एक बार राजा स्त्रायम्भुवमनु के मन में ग्लानि हुई कि-घर में रहते चौथापन आ गया और विषयों से प्रीति नहीं छूटती है ! उनके हृदय में बड़ा दुःख हुआ कि बिना हरिभक्ति के ही जन्म बीत गया ! ॥१४॥ तत्वज्ञान के विचार से राजा मनु के मन में विषयों से तिरस्कार उत्पन्न होना निवेद स्थायीभाव',है। चौ०-बरबस राज सुतहि टप दीन्हा । नारि समेत गवन बन कीन्हा । तीरथ बर नैमिष बिख्योता । अति पुनीत साधक-सिधि-दाता॥१॥ राजा मनुजी पुत्र को बरजोरी से राज्य देकर आप स्त्री के सहित वन को गमन किया। अत्यन्त पवित्र साधकों को सिद्धि देनेवाला श्रेष्ठ तीर्थ नैमिषारण्य प्रसिद्ध है ॥१॥ असहि तहाँ मुनि-सिद्ध-समाजा । तहँ हिय हरषि चले मनुराजा ॥ पन्ध जात साहहिं मति-धीरा । ज्ञान-भगति जनु धरे सरीरा ॥२॥ वहाँ मुनि और सिद्धों की मण्डली निवास करती है, राजा मनु हृदय में प्रसन्न हो कर वहीं चले। धीर-बुद्धि (राजा-रानी ) रास्ते में जाते हुए ऐसे मालूम होते हैं, मानो शान और भक्ति शरीरधारण कर शोभित हो रहे हैं। ॥२॥ शान भक्ति शरीर-धारी नहीं हैं, केवल कवि की कल्पनामात्र 'अनुक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार है। पहुँचे. जाइ धेनुमति-तीरा । हरषि नहाने निरमल नीरा ॥ आये मिलन सिद्धि मुनि ज्ञानी। धरम-धुरन्धर नृपरिषि जानी ॥३॥ गोमती नदी के किनारे जो पहुँचे, प्रसन्नता-पूर्वक उसके निर्मल जल में स्नान किया। उन्हें धर्मधुरन्धर राजर्षि जान कर सिद्ध और शानीमुनि मिलने आये ॥३॥ जहँ जहँ तीरथ रहे सुहाये । मुनिन्ह सकल · सादर करवाये ॥ कृस-सरीर मुनि-पट परिधाना । सत-समाज नित सुनहि पुराना ॥४॥ जहाँ जहाँ सुहावने तीर्थ थे, मुनियों ने प्रादर के साथ सभी (तीर्थ । कराये । वे पुर्वल, शरीर मुनियों की तरह वस्त्र पहने हुए नित्य सज्जन-मण्डली में पुराण सुनते हैं ॥४॥ 1