पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२१६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड १६१ चौ०-आवत देखिअधिकरवबाजी। चलेउ बराह मरुत-गति भाजी । तुरत कीन्ह नृप सर सन्धाना । महि मिलिगयउबिलोकत बाना ॥१॥ अत्यन्त वेग से घोड़े को पाता देख कर मुश्रर हवा की चाल से भगा । राजा ने तुरन्त धनुष पर घाण चढ़ाया, पाण को देखते ही वह जमीन में दवक गया ॥१॥ तकि तकि तीर महीस चलावा । करि छल सुअर सरीर बचावा ॥ प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा । रिस बस भूप चलेउ सँग लागा ॥२॥ राजा ने देख देख कर बाण चलाया, पर सुअर ने छत से अपना शरीर बचाया। कभी छिप कर कमी प्रगट हो कर वह मृग भागा जाता है, क्रोधवश राजा साथ लगे चले जाते हैं ॥ २॥.. गयउ दूरि धन-गहन बराहू । जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू ॥ अति अकेल बन बिपुल कलेसू । तदपि न भूग-मग तजइ नरेसू ॥३॥ शूकर घोर जङ्गल में दूर निकल गया, जहाँ हाथी घोड़े का गुज़र नहीं है। राजा निपट अकेले वन का भारी कष्ट सह रहे हैं, तो भी मृग का पीछा नहीं छोड़ते हैं ॥३॥ कोल बिलोकि भूप बड़ धीरा । आगि पैठ गिरि-गुहा-गॅमीरा ॥ अगम देखि नृप अति पछिताई । फिरेउ महाबन परेउ भुलाई ॥१॥ सुअर ने देखा कि राजा बड़ा साहसी है (डरा कि यह बिना वध किए पीछा न छोड़ेगा, तब वह एक) पहाड़ की गहरी गुफा में भाग कर पैठ गया । उसको दुर्गम देख कर राजा बहुत पछताये और लौटे, पर उस बड़े जगत में भुला गये ॥ ४॥ दो-खेद-खिन्न छुद्वित तृषित, राजा बाजि समेत । खोजत ब्याकुल सरित सर, जल बिनु भयउ अचेत ॥१५७॥ (शिकार निकल जाने के ) खेद से दुखी उस पर भूख और प्यास ले व्याकुल घोड़े के सहित राजा नदी तालाब ढूँढ़ते ढूँढ़ते विना पानी के अचेत हो गये ॥ १५७ ।। चौ०-फिरतबिपिन आस्रमएकदेखो । तहँ बस नृपति कपट-मुनि बेखा। जासु देस नप लीन्ह छड़ाई। समर सेन तजि गयउ पराई ॥१॥ वन में फिरते हुए एक श्राश्रम देखा, वहाँ कपट से मुनि के रूप में एक राजा रहता था। जिसका देश राजा भानुप्रताप ने जीत लिया था, वह युद्ध छोड़ कर भाग गया था (अभिमान., से सन्धि कर के राज्य लेना उसे स्वीकार नहीं हुआ) ॥१॥ समय प्रताप-भानु कर जानी । आपन अति असमय अनुमानी ॥ अभिमानी गयड़ न गृह मन बहुत गलानी । मिला न राजहि नृप ॥२॥ भानु प्रताप का समय जान कर और अपना प्रत्यरत दुर्दिन विचार कर घर नहीं गया !