पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२८५

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८ २२८ रामचरित मानस । दो०-वारा तड़ाग विलोकि प्रक्षु, हरष बन्धु समेत । परम-रस्य आराम यह, जो रामहि सुख देत ॥२२७॥ बाग और तालाब को देख कर प्रभु रामचन्द्रजी माई (लक्ष्मण) के सहित प्रसन्न हुए। यह बगीचों बहुत ही रमणीय है जो रामचन्द्रजी को सुख दे रहा है ॥२२॥ बाग के परम-रम्य होने का अर्थ युक्तिसे समर्थन करना कि जो जगत को रमानेवाला राम को आनन्ददायक हो रहा है 'काव्यतिज अलझार' है। चौ-चहुँ दिसि चित्तइ पूछि माली गन ।लगे लेन दल फूल मुदित मन । तेहि अवसर सीता तहँ आई । गिरिजा पूजन जननि पठाई ॥१॥ चारों ओर देख और मालियों से पूछ कर प्रसन्न मन से पचे पुप लेने लगे, उसी समय वहाँ माता की भेजी हुई गिरिजा की पूजा करने के लिए सीताजी आई ॥१॥ चारों ओर निहारने में सीताजी के दर्शनको उत्कएठा व्यक्ति होना व्यङ्ग है। मालियों से पूछने में श्लेष अर्थ की ध्वनि है । प्रत्यक्ष तोरक्षकों से पूछ कर फूल तोड़ने में सभ्यता है। दूसरा गुंत अर्थ राजकुमारी का आगमन तो धाग में नहीं हुशा है ? मालियों ने कहा अभी नहीं, घ प्रसन्न चित्त से फूलों को चुनने लगे। सङ्ग सखी सब सुभग सयानी। गावहिं गीत मनोहर बानी।। सर समीप गिरिजा गृह साहा । बरनि न जाइ देखि मन मोहा ॥२॥ सङ्गमें सब सयानी सुन्दर सखियाँ मनोहर वाणीले गीत गाती हैं सरोवर के पास गिरिजा- मन्दिर शौमित है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, देख कर मन मोहित हो जाता है। 'मनोहर' शब्द में अर्थ के श्लेष की ध्वनि है। यथा-"(१) ऐसा गान करती हैं जो वाणी (सरस्वती) के मन को हर लेती है । (२) सरस्वती ही मनोहर गीत गाती हैं (३) उनकी वाणी ही मनोहर है। मज्जन करि सर सखिन्ह समेता। गई मुदित मन गौरि निकेता ॥ पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा। निज-अनुरूप सुभग बर माँगा ॥३॥ रसखियों के सहित तालाब में स्नान कर के प्रसन्न मन से गिरिजा मन्दिर में गई। बड़े प्रेम से पूजा की और अपने अनुकूल सुन्दर घर माँगा ॥३॥ 'घर' शब्द श्लेषार्थी है, एक वरदान और दूसरा दूलह । एक सखी सिय सङ्ग बिहाई । गई रही देखन फुलवाई ॥ तेहि दोउ बन्धु बिलोके जाई । प्रेम-बिबस सीता पहि आई ॥४॥ एक सखी सीताजी का साथ छोड़ कर फुलवाड़ी देखने गई थी। उसने जाकर दोनों भाइयों को देर्खा । अविशय प्रेम के अधीन ई (विट्ठल दशा में) वह जनकनन्दिनी के पास नाई