पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/२९८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । चौ०-घटइ बढ़इ बिरहिनि दुखदाई । ग्रसइ राहु निज सन्धिहि पाई। कोक सोक-प्रद पङ्कज-द्रोही । अवगुन बहुत चन्द्रमा तोही ॥१॥ घटता बढ़ता है और वियोगियों को कष्टदायक है, अपनी सन्धि को पा कर राष्ट्र ग्रसता है । चकवा पक्षी को शोकदान करनेवाला और कमल का बैरी है, चन्द्रमा ! तुझ में बहुत अवगुण हैं ॥१॥ बैदेही-मुख पदतर दीन्हे । होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे ॥ सिय-मुख-छबि बिधु ब्याज बखानी। गुरु पहिँ चले निसा बड़ि जानी॥२॥ विदेह नन्दिनी के मुख की समानता देने में बड़ा अनुचित करने का दोष होगा। सीताजी के मुख की छवि चन्द्रमा के बहाने बखान कर रात अधिक बीती जान कर गुरु के पास चले॥२ चन्द्रमा के बहाने सीताजी के मुख की शोभा वर्णन करना 'व्याजोक्ति अलंकार है। करि मुनि-चरन-सरोज प्रनामा । आयसु पाइ कोन्ह बिस्तामा ॥ बिगत निसा रघुनायक जागे । बन्धु बिलोकि कहन अस लागे ॥३॥ ॥ मुनि के चरण कमलो को प्रणाम कर के आशा पा कर विश्राम किया । रात्रि बीतने पर रघुनाथजी जागे और भाई को देख कर ऐसा कहने लगे ॥ ३ ॥ उयेउ अरुन अवलोकहु ताता। पङ्कज-कोक-लोक सुखदाता ॥ बोले लखन जोरि जुग पानी। प्रभु-प्रभाव-सूचक मृदु बानी ॥en हे तात ! देखिए, कमल, चकषा पक्षी और जगत् को सुख देनेवाले सूर्य उदय हुए हैं। लक्ष्मणजी दोनों हाथ जोड़ कर कोमल वाणी से प्रभु रामचन्द्रजी के प्रभाव को सूचित करने- पाले वचन बोले ॥४॥ दो-अरुनोदय सकुचे कुमुद, उडुगन जोति मलीन । तिमि तुम्हार आगमन सुनि, भये नुपति बल हीन ॥ २३ ॥ जिस प्रकार सूर्योदय होने से पूईवेरे का फूल सङ्कुचित हो गया और तारागणा की ज्योति फीकी पड़ गई। वैसे ही आप के आगमन को सुन कर राजा लोग बल से हीन हो गये हैं ॥२३॥ आप का आगमन सुन कर राजाओं का बलहीन होना उपमेय वाक्य है और सूर्योदय से कुमुदों का सकुचना तथा तरइयों का चमक-हीन होना उपमान वाक्य है। दोनों का एक धर्म निस्तेज होना समानार्थवाची शब्दों द्वारा अलग अलग फथन करना 'प्रतिवस्तूपमा अलंकार है। 1