पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३१

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उसके अनुसार आप उधोग करेंगे तो बहुत सम्भार है कि दर्शन हो जायगा। अमुझस्थान में प्रतिदिन रामायण की कथा होती है, वहाँ हनुमानजी आते हैं। वे कोढ़ी के धिनावने रूप में सब से पहले पाते हैं और पीछे जाते हैं तथा सब दूर बैठ कर कथा श्रवण करते हैं। आप उनसे परिचय करके प्रार्थना कीजिये तो उनकी कृपा से कामना पूर्ण हो सकती है । गोस्वामोजी पूर्व ही से हनुमानजी को अपना इष्टदेव और सहायक मानते थे। प्रेत के द्वारा उनका पता पाकर उन्हें अपार आनन्द दुधा। हनूमानजी का मिलना। प्रेत के आदेशानुसार ठीक समय पर गोसाईजो कथा स्थान में गये। वहाँ देखा कि एक कुष्टी मनुष्य सब से पीछे दूर बैठा है । जव कथा समाप्त हुई और सय श्रोता क्रमशः विदा हो गये, तय कोड़ी रूपधारी हनूमानजी भी चले । उनके पीछे चुपचाप गोस्वामोजी हो लिये । एकान्त में पहुँचने पर गोसाँईजी ने पवननन्दन के पाँव पकड़ लिये और विनती करने लगे। हनुमानजी ने भुलाचा देकर वार बार उनसे पैर छुड़ाने की चेष्टा की, परन्तु जब देखो कि इससे छुटकारा न होगा, तब प्रत्यक्ष होकर वोले कि तुम क्या चाहते हो ? गोसाँईजी ने कहा-स्वामिन् ! मुझे रघुनाथजी के दर्शन करा दीजिये। . पवनकुमार ने आज्ञा दी कि, चित्रकूट चलो वहाँ तुमको रघुनाथजी के दर्शन होंगे। चित्रकूट में रामदर्शन। हनूमानजी के आदेशानुसार गोर्मोईजी चित्रकूट पाये । एक दिन स्वाभावतः धन में विच- रण कर रहे थे। वहाँ देखा कि श्यामल-गौर वर्ण दो राजकुमार घोड़े पर सवार हाथ में धनुष- वाण धारण कर एक हरिण का पीछा किये घोड़ा दौड़ाये चले जा रहे हैं। उन राजकुमारों की अनुपम छवि देख गोस्वामीजी का मन मोहित हो गया, किन्तु वे यह नहीं जान सके कि रामचन्द्र और लक्ष्मण यही हैं। पीछे हनुमानजी ने श्राकर कहा कि दोनों राजकुमार जो वन में तुम्हें दिखाई दिये हैं श्यामल रामचन्द्रजी और गार लपणलाल थे । तुम धन्य हो जो स्वामी का दर्शन पा गये । यह सुन कर गोसाईजो को बड़ी प्रसन्नता हुई। प्रियादाल और भक कल्पद्रुम के लेखक ने इसी प्रकार दर्शन होना वर्णन किया है किन्तु नियर्लन साहब ने दूसरे ही प्रकार से उल्लेख किया. है। वे लिखते हैं कि एक पार गोस्वामीजी वस्ती के बाहर जा रहे थे, वहाँ देखा कि रामलीला हो रही है। लला जीत कर राम, लक्ष्मण, सीताजी विभीषण-सुग्रीवादि के सहित अयोध्या को प्रस्थान कर रहे हैं। लीला समाप्त हो जाने पर गोसाँईजी वस्ती की ओर चले। रास्ते में ब्राह्मण के वेश में हनुमानजी मिले । गोस्वामीजी ने उनसे कहा यहाँ बहुत अच्छी रामलीला होती है। ब्राह्मण ने कहा-तुम पागल हुए हो, आश्विन कार्तिक मास के सिवा कहीं आज कल भी रामलीला होती है। उस ब्राह्मण को साथ लिये गोसाँईजी लीला का स्थान दिखाने चले । वहाँ पहुँचने पर किसी प्रकार का चिह्न वा कोई मनुष्य नहीं दिखाई पड़ा । गोस्वामीजी लज्जित हुए और अपनी भूल पर उन्हें वड़ा पश्चात्ताप हुश्रा, सोचते विचारते अपनी कुटी पर लौट आये। कुछ खाया पिया नहीं और मन स्वप्न में दर्शन देकर हनूमानजी ने कहा-पछताश्रो मत । कलियुग में किसी को प्रत्यक्ष दर्शन नहीं अत्यन्त दुखी हो रोते ही रोते सो गये। होता, तुम बड़े ही भाग्यशाली हो जो भगवान के दर्शन हुए; शोक त्याग कर भगवान रामचन्द्रजी का सानन्द भजन करो। इससे गोस्वामीजी को परम सन्तोष हुना। किसी किसी के मुख से यह भी किम्बदन्ती सुनने में आई है कि हनूमानजी ने कहा कि तुम चन्दन घिस कर रामघाट मन्दाकिनी के तट पर बैठ जाओ और जितने सन्त महात्मा स्नान के लिये