पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३३५

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रामचरित मानस । २७६ बालक बोलि बघउँ नहि तोही । केवल मुनि जड़ जानहि मोही। बाल-ब्रह्मचारी अति कोही । बिस्व-विदित छत्रिय-कुल-द्रोही ॥३॥ वालक समझ कर तुझे मारता नहीं हूँ। मूर्ख! मुझको केवल मुनि जानता है ? मैं पाल- ब्रह्मचारी अत्यन्त क्रोधी हूँ और क्षत्रिय वंश का द्रोही संसार में प्रसिद्ध ॥३॥ मुनि होने पर भी यह कहना कि मुझे केवल मुनि समझता है, इन वाक्यों में प्रतिषेध की ध्वनि है। भुज-बल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिंदेवन्ह दोन्ही ॥ सहसबाहु-भुज छेदनिहारा । परसु बिलाकु महीप-कुमारा wen अपनी भुजाओं के बल से मैं ने पृथ्वी को बिना राजाओं के की है और बहुत बार ब्राह्मणों को दे दी है । हे राजकुमार ! सहस्रार्जुन के वाहुओं को काटनेवाला यह कुल्हाड़ा देख nan औरों की अपेक्षा अपने वल, धीरता को अधिक मानना 'गर्व सवारी भाष' है। दो०-मातु-पितहि जनि सोच बस, करसि महीप-किसोर। गरभन के अरभक दलन, परसु मार अति घोर ॥२२॥ हे महीप-कुमार! अपने माता-पिता को सोच वश मत कर । मेरा फरसा गर्मियों के बच्चों तक का नाश करने में बड़ा भयङ्कर है ॥२७२॥ परशुरामजी के कहने का तात्पर्य तो यह है कि मैं तुझे मार डालूंगा, पर यह सीधे न कह कर इस प्रकार कहना कि त अपने माता-पिता को सोच के अधीन मत कर । लक्ष्मणजी का मारा जान कारण है, माता-पिता का सेच वश होना कार्य है। कार्य के बहाने कारण का कथन “कारज निबन्धना अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार' है। यहाँ परशुरामजी का क्रोध स्थायी भाव है । धनुष तोड़नेवाला पालम्वन विभाव है । धनुष को पुराना सड़ासामान्य कथन निन्दा उद्दीपन विभाव है। आँखें लाल होना, क्षत्रियों की निसना, कुठार उठाना प्रादि भनुभाष है। उग्रता, चपलता, गर्व सञ्चारी भावों से पुष्ट होकर 'बौद्ररस' संबर को प्राप्त हुआ है। चौ -बिहँसि लखन बोले मृदुबानी । अहो मुनीस महा अट मानी॥ पुनि पुनि माहि देखाव कुठारू । बहत उड़ावन फँकि पहा ॥१॥ लक्ष्मणजी हँस कर कोमल वाणी से बोले-अहो मुनिराज! आप बड़े अभिमानी शुरवीर हैं। पर वार मुझे भलुहा दिखा कर फूक से पहाड़ उड़ाना चाहते हो ॥१॥ पूर्वार्द्ध में प्रत्यक्ष तो प्रशंसा की गयी है, किन्तु सुनिराज का अभिमानी होना निन्दा की विज्ञप्ति 'ब्याजनिन्दा अलंकार' है। उत्तराई में लक्ष्मणजी को प्रस्तुत वर्णन तो यह है कि मैं भी शूरवीर आप ले बढ़ कर पराक्रम करनेवाला हूँ, मुझे फरसा दिखा कर डराना चाहते हो। पर ऐसा न कह कर प्रतिविम्म मात्र कहना कि क का पहाड़ उड़ाना चाहते हो 'ललित अलंकार' है।