पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३८

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नारायण) ये तीनों पदार्थ राजभण्डार में श्रपतक सुरक्षित हैं । राजा उदातशाह के समय में गोस्वा. मौजी के पधारने का हाल लेखबद्ध करा कर रक्खा गया था, वह अबतक वर्तमान है । श्रीलक्ष्मीनारायण का उत्सव उसी समय से आश्विन शुक्ल १४ को मनाया जाने लगा, यह उत्सव अबतक प्रतिवर्ष होता जारही है। हमें इस घटना का पता इस प्रकार लगा कि हमारे लघपन्धुप बेनीप्रसाद मालवीय जो इस समय मुरादाबाद पुतिस टूनिक स्कूल के प्रोफेसर हैं, सन् १९१८ ई० में वे थाना रमपुरा के इनचार्ज थे। इसी थाने के अन्तर्गत जगम्मनपुर रियासत है। उन्हों ने पूर्वोत तीन वस्तुओं को एवम् उस समय का लिखा लेख स्वयम् देखा था । जव गोस्वामीजी की जीवनी लिखने का हमें शुभ अवसर प्राप्त हुआ, तब हमने विस्तृत समाचार मँगवाने के लिये उन्हें मुरादाबाद पत्र लिखा । उन्हों ने उक्त राज्य के मैनेजर से खुलाला हाल लिख भेजने की प्रार्थना की। नायब दीवान चौबे कन्हैया- लालजी ने कृपा कर उपर्युक्त समाचार लिख भेजा इसके लिये हम श्राप को हार्दिक धन्यवाद देते हैं। जगम्मनपुर से चल कर गोस्वामीजी चित्रकूट होते हुए काशी लौट आये। हत्या कुड़ाना। एक दिन एक हत्यारा पुकारता फिरता था कि मैं हत्यारा हूँ, कोई राम का प्यारा राम के नाम पर मुझे भोजन करा दे। हत्यारे के मुख से राम-नाम का पुकार सुन कर गोस्वामीजी बहुत प्रसन्न हुए । समीप में बुला कर महाप्रसाद दिया और कहा कि राम नाम के प्रभाव से तुम्हारी हत्या छुट गयी। इस पर काशी के पंडितों ने बड़ा हो हल्ला मचाया । सब मिल कर गोलाँईजी के पास गये और पूछा कि इसकी हत्या बिना प्रायश्चित्त किये किस प्रकार छूट गयी जिससे आप ने इसको अपने साथ बिठा कर भोजन कराया ? गोस्वामीजी ने कहा श्राप लोग राम-नाम की महिमा ग्रन्थों में देखते हैं, परन्तु उस पर विश्वास नहीं रखते, यही कच्चाई है। राम नाम उच्चारण करने से यह सर्वथा शुद्ध हो गया। अब इसमें हत्या का लेशमात्र दोष नहीं है। उन लोगों ने कहा कि आप की बात को हमलोग तभी सत्य मानेगे, जब विश्वनाथजी के मन्दिर में पत्थर के नन्दी इसके हाथ का छुमा व्यजन भोजन करेंगे। ऐसा ही किया गया और कपड़ ोट के भीतर भोजन की थाली हत्यारे ने नन्दी के सामने रख दी। थोड़ी देर में देखा गया तो थाली साफ । यह अद्भुत दृश्य देख कर अभिमानी पण्डित शरमा गये। कितने लोगों को इस घटना से गम नाम में पूर्ण विश्वास उत्पन्न हुश्रा और घे हरिभत होकर नाम-स्मरण करने लगे। कहते हैं इस पर कलि ने प्रत्यक्ष रूप से गोस्वामीजी को धमकाया, उन्होंने हनुमानजी से प्रार्थना की, पवनकुमार ने विनयपत्रिका लिखने का आदेश किया, तय गोसाँईजी ने विनय-पत्रिका बनायी । इसका आभास विनय पत्रिका के २२० पद में मिलता है। जगदीश की थाना। जगदीश की यात्रा करके प्रथम गोसाईजी बलिया के भृगुमाश्रम, हंसनगर, परसिया. आदि अस्थानों से होते हुए गायघाट आये। वहाँ के गजा गम्भीरदेव ने उनका अच्छा आतिथ्य- सत्कार किया। वे ब्रह्मपुर में ब्रह्म श्वरनाथ महादेव का दर्शन कर कान्तगाँव में आये। उस ग्राम के सारे मनुष्य राक्षसी प्रकृतिवाले थे, इस कारण सध्या हो जाने पर भी वहाँ भोजन मार विश्राम करना उचित न समझ कर आगे बढ़े। थोड़ी दूर चले जाने पर उसी गाँव का रहनेवाला साँव का लड़का मैंगरू अहीर मिला । वह बड़ी नम्रता से प्रार्थना करके गोसाँईजी को अपनी गोशाले में लिया ले गया और वहाँ आसन कराया। मैंगरू ने बड़ी श्रद्धा से हर प्रकार की सेवा को और भोग लगाने