पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/३८८

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4 प्रथम सोपान, बालकाण्ड । हरिगीतिका-छन्द । बैठे बरासन राम जानकि, मुदित मन दसरथ भये । तन पुलक पुनि पुनि देखि अपने, सुकृत-सुरतरु-फल नये॥ भरि झुवन रहा उछाह राम बिबाह मा सबही कहा। केहि भाँति बरनि सिरात रसना,-एक यह मङ्गल महो ॥३४॥ रामचन्द्र और जानकीजी उत्तम आसन पर बैठे, उन्हें देख कर दशरथजी मन में आनन्दित हुए । शरीर पुलकित हो गयो, बार बार अवलोकन कर अपने पुण्य रूपी कल्पवृक्ष के फल से नम्र हो गये, लोगों में उत्साह भर रहा है, सब कहते हैं कि रामचन्द्रजी का विवाह हुआ। यह महा माल एक जीभ से किस प्रकार वर्णन करके समाप्त किया जा सकता है ? ॥ ३४॥ एक जिता श्राधार है और रामचन्द्रजी के विवाह का उत्साह मह मङ्गल जो लोकों में भर रहा है, वह प्राधेय है उसका लघु आधार में पटना असम्भव है। अधिक और असम्भव का सन्देहसङ्कर है । दशरथजी का प्रेम से रोमाञ्चित होना सात्विक अनुभाव है । अपने अपूर्व सौभाग्य और मान मर्यादा को देख कर विस्मय से मन में सङ्कुचित होना 'नीडासचारी भाव' है। तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु, ब्याह साज सँवारिकै । मांडवी खुतिकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हूँ कारि कै॥ कुसकेतु-कन्या प्रथम जो गुन, सील-सुख-सौभा मई । सब रीत प्रीति समेत करि सो, ब्याहि नृप भरतहि दई ॥३५॥ तब वशिष्ठजी की आशा पा कर राजा जनक ने विवाह का सामान सजा कर माण्डवी, श्रुतिकीर्ति और उर्मिला तीनों कन्याओं को बुला लिया। कुशध्वज की जेठी पुत्री (माण्डवी) जो गुण, शील, सुख और शोभा की रूप है, राजा ने प्रीति सहित सब रीति कर के उसको भरतजी के साथ विवाह दिया ॥३५॥ कुशकेतु की प्रथम कन्या फहने से द्वितीय का अर्थ प्रकट होना 'मूढ़ोतर अलंकार है। राजा जनक का नाम सीरध्वज और छोटे भाई का नाम कुशध्वज है। सीरध्वज की कन्या जानकी और उर्मिला हैं। कुशध्वज की कन्या माण्डवी और श्रुतिकीत्ति हैं। जानकी लघु मगिनी सकल-सुन्दरि-सिरोमनि जांनि के सो जनक दीन्ही व्याहि लखनहि, सकल बिधि सनमानि कै॥ जेहि नाम सुतिकीरति सुलोचनि, सुमुखि सब गुन आगरी। सो . दई रिपुसूदनहि भूपति, रूप-सील-उजागरी ॥३६॥ जनकजी की छोटी बहिन (उमिला) को सम्पूर्ण सुन्दरियों की शिरोमणि जान कर सब तरह सन्मान कर के उसको राजा जनक ने लक्ष्मणजी को व्याह दिया। जिनका श्रुतिकी.