पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४१८

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । उपबरहन-बर बरनि न जाहीँ । खग-सुगन्ध मनि-मन्दिर माहीं॥ रतन दीप सुठि चारु चदोवा । कहत्त न बनइ जान जेहि जोवा ॥२॥ उत्तम तकिया वर्णन नहीं की जा सकती, मणियों के मन्दिर में फूलों के माला की सुगन्ध छा रही है। रन के दीपक और सुन्दर सुहावने चैदावे की शोभा कहते नहीं बनती, जिसने देला वही जान सकता है ॥२॥ उपवरहन-उपधानं तूपवहः इत्यमरः तकिया। चोवा- 1-एक प्रकार का छोटा तम्बू जो राजाओं के पलंग के ऊपर सोने वा चाँदी के चार चाबों के सहारे ताना जाता है। सेज रुचिर रचि रोम उठाये । प्रेम-समेत पलँग पौढ़ाये । आज्ञा पुनि पुनि भाइन्ह दीन्ही । निज निज सेज सयन तिन्ह कीन्ही॥३॥ सुन्दर सेज समाकर रामचन्द्रजी को उठाया और प्रीति के साथ पलंग पर पौढ़ाया। मार बार भाइयों को अाशा दी, तब वे भी अपनी अपनी पलँगों पर सोये ॥३॥ देखि स्याम मृदु मज्जुल गाता । कहहिँ सप्रेम बचन सब माता । मारग जात भयावनि भारी। केहि बिधि तात ताड़का भारी ॥४॥ सुन्दर श्यामल केमल शरीर देख कर सब माताएं प्रेम से पचन कहती हैं। हे पुत्र ! बड़ी भयावनी ताड़का राक्षसी को मार्ग में जाते हुए तुमने किस प्रकार से मारा ? men दो-चार निसाचर बिकट भट, समर गनहिँ नहिं काहु । मार सहित सहाय किमि, खल मारीच सुबाहु ॥ ॥३५६॥ भयकर राक्षस कठिन योद्धा जो समर में किसी को गिनते ही नहीं। ऐसे दुष्ट मारीच और सुवार को उनकी सहायक सेना के सहित कैसे मारा १ ॥ ३५६ ॥ अनुचित चिन्ता का होना 'भाषामास' है। चौ०--मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरै टारी ॥ मख रखवारी करि दोउ भाई। गुरु-प्रसाद सब बिद्या पाई ॥१ हे पुत्र ! मैं तुम्हारी बलि जाती हूँ मुनि की कृपा से ईश्वर ने बहुत सी आपत्तियाँ (भुलीयते) हटाई । दोनों भाई यक्ष फीरखवाली कर के गुरु के अनुग्रह से सब विद्या पाई ॥१॥ मुनि-तिय तरी लगत पग धूरी । कीरति रही भुवन भरिभूरी ॥ कमठ-पीठि पबि कूट कठोरा । नृप-समाज महँ सिव-धनु तोरा ॥२॥ मुनि की श्री चरणों की धूलि लगने से तर गई ! यह कीर्ति ब्रह्माण्ड में पूर्णरीति से भर रही है। कछुए की पीठ, वज्र और लोहदण्ड से भी कठिन शिवजी के धनुष को राज-समाज में तोड़ा॥२॥ 'कूट' शन्द्र पर्वत और लोहवयह दोनों का पर्यायी है।