पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४३

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. हैं। मिर्जापुर निवासी प्रसिद्ध रामायणी स्वर्गीय ५० रामगुलाम द्विवेदी ने छोटे बड़े सय मिलाकर गोसाँईजी के बनाये १२ अन्ध गिनाये हैं। द्विवेदीजी ने रामायण को क्षेपक के जंजाल से मुक्त करने में सर्वप्रथम सराहनीय परिश्रम किया था। केवल रामायण ही नहीं उन्हों ने सभी ग्रन्थों के मूत पाठ खोज निकालने में भगीरथ प्रयत किया और अपने उद्योग में पूर्ण सफल हुए थे। एक घनाक्षरी में उन बारही ग्रन्थों की गणना उन्हों ने इस प्रकार की है। "रामलला नहछू विरागसन्दीपिन हूँ, बरवै बनाय विरमाई मति साँई की। पारबती जानकी के मङ्गुल ललित गाय, रम्य रामभाना रची कामधेनु नाई की। दोहा औ कवित्त गीतबद्ध कृष्नकया कहीं, रामायन विनय महें यात सत्र ऑई की। जग में सेहानी जगदीश हू के मन मानी, सन्त सुखदानी बानी तुलसी गोसाई की ॥" (१) रामलला नहळू (५) जानकी-मनल (8) गीताचली-रामायण (२) वैराग्यसन्दीपनी (६) रामाशा-प्रश्नावली (10) कृष्ण गीतावली (३) बरवै-रामायण (७) दोहावली (११) रामचरितमानस (४) पार्वती मंगल () कवित्त-रामायण (१२) विनय-पत्रिका इन्हीं बारहों अन्यों को काशी नगरीप्रचारिणी सभा के सदस्यों ने भी मुख्य गिनाया है। एक तुलसी नाम के कायस्थ हो गये हैं और दूसरे तुलसीदास नामक सनाढ्य ब्राह्मण अच्छे कवि हुए हैं। इन्हीं दोनों कवियों के प्रन्थों के भ्रम में पड़ कर लोगों ने गोलाईजी का महत्व बढ़ाने के लिये उनकी संख्या बढ़ा कर ३०.३२ से अधिक पहुँचा दी है। गोस्वामीजी पर बहुत से ग्रन्धों का चोझ लादना मेरी समझ में उचित नहीं है, क्योंकि उनका महत्व बढ़ाने वाले और कोई अन्य चाहे न भी है। तो रामचरितमानस और विनय पत्रिका यही दोनों पर्याप्त हैं। गोसाँईजी के बारहो अन्धों का संक्षिप्त परिचय हम पाठकों को कराते हैं और ये सब तुलसी ग्रंथावली के नाम से मोटे अक्षरों में वेलवेडियर प्रेस प्रयाग में छपे हैं। (१) रामलला नहछू–वह २० सोहर छन्दों का छोटा सा ग्रन्थ है। पण्डित रामगुलामजी ने लिखा है कि चारों भाइयों के यज्ञोपवीत के समय का यह नहळू है, क्योंकि विवाद के समय रघु. नाथजी वारात के पहले ही जनकपुर में विराजमान थे इससे अयोध्या में नहछू होना सम्भव नहीं है । (२) वैराग्य सन्दीपनी-यह भी छोटा सा ग्रन्थ दोहा चौपाइयों में बना है। इसमें तीन प्रकाश हैं । प्रथम सन्तस्वभाव वर्णन ३३ छन्दों का है दूसरा सन्तमहिमा वर्णन छन्दों में और तीसरा शान्ति वर्णन २० छन्दों का है। सब मिला कर ६२ छन्द संख्या है। विषय नाम ही से प्रकट है (३) वरवै-रामायण-यह बरवा छन्दों में निर्मित है । संक्षिप्त रूप से सातों कांड की कथा का षण न है । छन्द संख्या ६ है। पं. शिवलाल पाठक ने लिखा है कि घरवा-रामायण बड़ा ग्रन्थ था, किन्तु वह पूरा मिलता नहीं । जान पड़ता है यह पाठकजी का अनुमान ही अनुमान है, कोई प्रमाण उन्हों ने नहीं उपस्थित किया। (४) पार्वतीमङ्गल-यह फोगुन सुदी ५ गुरुवार सम्बत् १६४३ में बना था। इसमें शिव- पार्वती को विवाह विस्तार से वर्णन हुआ है । ७४ मङ्गल और १६ हरिगीतिका छन्द इसमें है। (५) जानकी महल-इसमें राम-जानकी के विषाहउत्सव का वर्णन है, परन्तु रामचरित मानस की कथा से इसमें कुछ भिन्नता है। फुलवाड़ी की कथा का वर्णन नहीं है और परशुरामजी का श्रागमन विधाहेरपरान्त कहा गया है । इसमें १६ मङ्गल और २४ हरिगीतिका छन्द है। 1