पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५२६

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । १६७ एहि प्रतिपालउँ सब परिवारू । नहिं जानउँ कछु अउर कबारू ॥ प्रभु पार अवसि गा चहहू । मेोहि पदु-पदुम पखारन कहहू ॥४॥ इसी से मैं सब कुटुम्बियों का पालन-पोषण करता हूँ, दूसरा धन्धा (रोज़गार कुछ नहीं जानता। हे प्रभो ! बदि आप प्रवश्व पार जाना चाहते हैं तो मुझे चरण-कमलों को धोने के लिए कहिये ॥४॥ केपट पाँव धोना चाहता है, पर उसे सीधे शब्दों में न कह कर कि 'मैं आप के चरणों को धोऊँगा' बहाने की बात कर के काम साधता है, यह द्वितीय पर्यायोक्ति अलंकार' है। कहता है कि-"विट की जाति कछू वेद न पढाइ हौँ । दोन वित्त होन कैसे दूसरी गढ़ाहौँ । प्रभु साँ निषाद द्वे के बाद न बढ़ाइहाँ । बिना पग धोये नाथ नाव न बढ़ाइहै।' हरिगीतिका-छन्द । पद-कमल धाइ चढाइ नाव न, नाथ उतराई वहाँ। मोहि राम रोउरि-आन दसरथ, सपथ सब साँची कहाँ । बरु तीर मारहु लखन पै जब, लगि न पाय पखारिहौँ । तबलगि न तुलसीदास-नाथ, कृपाल पार उतारिहाँ ॥४॥ हे नाथ ! मैं कुछ उतराई नहीं चाहता किन्तु चरण-कमलों को धोकर ही नाव पर चढ़ा. ऊँगा। हे रामचन्द्रजी ! मुझे माप की सौगन्द और महाराज दशरथजी की किरिया है, सब सत्य ही कहता हूँ। चाहे लक्ष्मणजी वाण मार दे (प्राण दे दूंगा ) परन्तु जबतक पाँव न धो लूँगा तबतक हे कृपालु तुलसीदास के स्वामी ! मैं आप को पार न उतारूँगा ॥४॥ भविष्य में होनेवाली बात तुलसीदास के नाथ कहने में 'भाषिक अलंकार' है। सा०-सुनि केवट के बयन, प्रेम लपेटे अटपटे । बिहँसे करना-अयन,चितइ जानकी लखन-तन ॥१०॥ प्रेम से सनी केवट की टेढ़ी बात सुन कर दयानिधान रामचन्द्रजी जानकीजी और लक्ष्मणजी की ओर देख कर हँसे ॥ १० ॥ केवट की बात सुन कर रामचन्द्रजी उसके मन का अभिप्राय समझ गये और सीताजी तथा बन्धु की ओर निहार कर मुस्कुराये जिससे अपना तात्पर्य जता दिया कि पार उतरना ही है, तब इससे पाँच धुलाना चाहिए 'सूक्ष्म अलंकार' है । रामचन्द्रजी के हँसने में कई प्रकार को व्यसनामूलक गढ़ ध्वनि है । यथा-(१) "उसकी अट पट वाणी सुन कर इस लिए हँस पड़े कि कहीं सीताजी और लक्ष्मणजी इस पर क्रोध न कर बैठे, क्योंकि लक्ष्मणजी के रुख को देख कर केवट ने स्पष्ट कह दिया कि चाहे लदमणजी तीर मार दें। (२) मेरी भक्ति की बढ़ता को देखिये, यह प्राण देने को तैयार है पर समय चूकना नहीं चाहता। ऐसे दीन दास का सम्मान करना मेरा धर्म है। (३) अब तक आप दोनों चरण सेवी थे; किन्तु आज यह भी उसका हिस्सेदार होना चाहता है। (४) अभी यह पहला भक अटपट बोलनेवाला