पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । वसन्ततिलका-वृत्त। नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि । स्वान्तःसुखायतुलसी रघुनाथगाथाभाषानिवन्धमतिमञ्जुलमातनोति ॥७॥ नाना पुराण वेद और शास्त्र की सम्मति के अनुसार तथा जो रामायणों में वर्णित है, और कुछ अन्यत्र से भी श्रीरघुनाथजी की कथा को तुलसीदास अपने अन्तःकरण के सुख के लिए अत्यन्त मनाहर भाषा की रचना से विस्तृत करता है।॥ ७॥ 'क्वचिदन्यतोऽपि पर लोग शङ्का करते हैं कि जब वेद, शास्त्र, पुराण, रामायण कह चुके तो "कुछ अन्यत्र" से कौन सा तात्पर्य है ? उत्तर -स्मृति, नाटक श्रादि, लोकोक्तियाँ और अपना विधार रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा इत्यादि । सोरठा-जेहि सुमिरत सिधि होइ, गन-नायक करि-बर-बदन । अनुग्रह सोइ, बुद्धि-रासि सुभ-गुन-सदन ॥ जिनके स्मरण ले (सम्पूर्ण मनोरथ ) सिद्ध होते हैं, गुणों के मालिक, हाथी के समान सुन्दर मुखदाले. बुद्धि की राशि और अच्छे गुणों के स्थान श्रीगणेशजी मुझ पर कृपा करें। 'धुद्धिराशि' सुभ-सुगुन-सदन' और 'गननायक' संज्ञाएँ साभिप्राय है, क्योंकि बुद्धि की राशि ही बुद्धि निर्मल कर सकती है । शुभ-गुणों का स्थान ही गुणवान् बना सकता है और गणों का स्वामी ही कामना सिद्ध करने में समर्थ हो सकता है । यह 'परिकराङ्कर अलंकार' है। मूक होइ बाचाल, पङ्गु चढ़इ गिरिवर गहन । जासु कृपा सो दयाल, द्रवउ सकल-कलिमल-दहन ॥ जिनकी कृपा से मूंगा बोलनेवाला होता है और पंगुल दुरारोह पहाड़ पर बढ़ जाता है, कलि के सम्पूर्ण पापों को जलानेवाले वे (सूर्य भगवान) मुझ पर प्रसन्न हों। गूंगे को वाचाल कथन और पंगु को ऊँचे दुर्गम पर्वत पर चढ़नेवाला कहने में किया विरोध का आभास विरोधासास अलंकार है। इसमें भी सब संज्ञाएँ साभिप्राय हैं, रामच- रित वर्णन करने में गोसाई जी, अपने को मूक, पंगु और कलिमल-ग्रस्त मान कर वन्दना करते हैं। जिनकी कृपा से मूक वाचाल होता है; वही बोलने की शक्ति प्रदान करने से समर्थ हो सकता है, जो पंगुल को पर्वत विहारी बनाता है, वही गमन शक्ति प्रदान कर सकता है और पापों को जलानेवाला ही निष्पाप बना सकता है, यह 'परिकरराङ्कुर अलंकार' है। कोई कोई 'भूकं करोति वाचाल' के आधार पर विष्णु भगवान् पर अर्थ घटाते हैं पर विष्णु की वन्दना नीचे के सोरठा में की गई है।