पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचरित-मानस! १० पत्थर (ोले) खेती का नाश कर के आप भी गल जाते हैं । फिर क्रोध भरे शेषनाग की तरह खलों को मैं प्रणाम करता है, जो पराये दोपों का वर्णन हज़ार मुख से करते हैं ॥२॥ शेष सरोप नहीं हैं पर खल सरोप शेप के समान हैं, शेप हज़ार मुख से हरि यश वर्णन करते हैं, खलों के एक ही मुख पराये का दोष कहने के लिए हज़ार मुस्त्र के समान 'पूर्णोपमा अलंकार है। पुनि प्रनवाँ पृथुराज समाना । पर अघ सुनइ सहस-दस-काना । बहुरि सक्र सम बिनवउँ तेही । सन्तत सुरा-नीक हित जेही ॥५॥ फिर उन्हें राजा पृथु के समान जान कर प्रणाम करता है, जो दूसरों का दुष्कम नस हज़ार कानों से सुनते हैं । फिर उनको इन्द्र के बराबर समझ कर विनती करता है। जैसे इन्द्र को देवतावों का एड प्रिय है तैसे खलों को मदिरा प्यारी है ॥५॥ बचन बज्न जेहि सदा पियारा । सहस-नयन पर दोप निहारा ॥६॥ जिनको वचन रूपी वन सदा प्यारा है और जो हजार आँख से पराये का दोष देखते हैं ॥६॥ दो-उदासीन-अरि-मीत-हित, सुनत जरहिं खल रीति । जानि पानि जुग जोरि जन, विनती करइ सप्रीति ॥ ४ ॥ खतो की यही रीति है कि वे उदासीन, शत्रु, और मित्र की भलाई सुन कर जलते हैं। ऐसा जानते हुए भी यह जन · तुलसीदास) दोनों हाथ जोड़ कर प्रीति पूर्वक उनसे गिनती करता है.॥४॥ तटस्थ, (जो न शत्रु हो न मित्र हो ) मित्र और शन्न तीनों की भलाई सुन कर जलना अर्थात् हित अनहित के साथ एक ही धर्म कथन करना 'चतुर्थ तुल्ययोगिता अलंकार' है। चौo-में अपनी दिसि कीन्ह निहोरा । तिन्ह निज ओर न लाउब भारा॥ बायस पालिय अति अनुरागा । होहिं निरामिष कबहुँ कि कागा ॥९॥ मैंने अपनी ओर से (साधुधर्मानुसार) पिनती की है, पर वे अपनी ओर से कभी न चूकेंगे। कौए को बड़े प्रेम से पालिए तो क्या यह कभी मांस न खानेवाला हो सकता है ? दापि नहीं ॥१॥ बन्दउँ सन्त असज्जन चरना । दुख-प्रद-उभय बीच कछु धरना । मिछुरत एक प्रान हरि 'लेही । मिलत एक दारुन दुख देहीं ॥२॥ मैं सज्जन और दुर्जन दोनों के चरणों की वन्दना करता है, दोनों दुःख देनेवाले हैं पर उसमें कुछ अन्तर कहा जाता है। एक बिछुड़ने पर प्राण हर लेते हैं, दूसरे मिलने पर भीषण कष्ट देते हैं ॥२॥ चौपाई के पूर्वार्द्ध में यह कहना कि दोनों दुखदाई हैं, पर समझने से उस दुःख में फर्क जान पड़ता है. यह उन्मीलित है। उत्तरार्द्ध में सज्जन-सज्जन का मिलना बिछुड़ना एक ही कार्य द्वारा विरुद्ध क्रिया का वर्णन "द्वितीय स्याघात अलंकार है