पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रथम सोपान, बालकाण्ड । २१ जिस हवा में सुमेरु उड़ जाता है, उसमें कई की कौन सी.गणना 'काव्यार्थापत्ति प्रलं- दो०-सारद सेष महेस विधि, आगम निगम पुरान । नेति नेति कहि जासु गुन, करहिं निरन्तर गान ॥ १२ ॥ सरस्वती, शेष, शिव, ब्रह्मा, शास्त्र, वेद और पुराण जिनके गुण को-इति नहीं, इति । नहीं-कह कर निरन्तर गान करते हैं ॥११२॥ चौ०-सब जानत प्रभु प्रभुता साई । तदपि कहे बिनु रहा न कोई ॥ तहाँ बेद अस कारन राखा । भजन प्रभाउ भाँति बहु भाखा ॥१॥ प्रभु रामचन्द्रजी की उस महिमा को सब (इति न होनेवाली ) जानते हैं, तो भी बिना कहे कोई न रहा अर्थात् सभी ने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार वर्णन किया है। यह क्यों ?--वहाँ घेद ने ऐसा कारण रख कर भजन का प्रभाव बहुत तरह से वर्णन किया है (हरिकीर्तन एक प्रकार का भजन है, इससे लोगों ने किया, किन्तु पार पाने की इच्छा से नहीं-उसी तरह मैं भी रामचरित कहूगा)॥१॥ एक अनीह अरूप अनामा। अज सच्चिदानन्द परधामा ॥ व्यापक बिस्व-रूप भगवाना । तेहि धरि देह चरित कृत नाना ॥२॥ जो अद्वितीय, इच्छारहित, बिना रूप और बिना नाम के, अजन्मे, सत्-चित्-श्रानन्द के रूप, साकेत विहारी, सर्व व्यापक, जगन्मय भगवान हैं, उन्होंने शरीर धारण कर नाना प्रकार के चरित्र किये हैं । ॥२॥ सो केवल भगतन्ह हित लागी । परम कृपाल प्रनत-अनुरागी ॥ जेहि जन पर ममता अति छोहू । जेहि करुना करि कीन्ह न कोहू ॥३॥ वे केवल भक्तों की भलाई के लिए अवतार लेते हैं और बड़े ही कृपालु तथा शरणागतो पर प्रेम करनेवाले हैं। जिनकी सेवकों पर प्रीति और अतिशय कृपा रहती है, जिन्होंने दया. करके (जनों पर कभी) क्रोध नहीं किया ॥३॥ 'गई बहार गरीब-नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ बुध बरनहिँ हरिजस अस जानी । करहिं पुनीत सुफल निज-बानी या रघुनाथजी खोई हुई वस्तु के लौटानेवाले, दीनदयाल, सीधे और बलवान स्वामी हैं। ऐसा समझ कर बुद्धिमान, लोग अपनी वाणी को पवित्र तथा सफल, करने के लिए भगवान् का यश वर्णन करते हैं ॥४॥