पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८४२

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चतुर्थ सेापान, किष्किन्धाकाण्ड । ७७३ मज्जन कीन्ह मधुर फल खाये । तासु निकट पुनि सब चलि आये । तेहि सब आपनि कथा सुनाई । मैं अब जाब जहाँ रघुराई ॥२॥ स्नान करके मीठे फल खाये फिर सब चल कर उस तपस्विनी के पास आये । उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई और कहा कि अब मैं जहाँ रघुनाथजी हैं; वहाँ जाऊँगी ॥२॥ उसने अपना वृत्तान्त इस प्रकार कहा- मैं दिव्य नामक गन्धर्ष की पुत्री हूँ और मेरा नाम स्वयंप्रभा है। विश्वकर्मा की रूपवती कन्या हेमा ने शिवजी को प्रसन्न कर के यह प्रदेश पाया था। मेरी उससे मित्रता थी। जब वह ब्रह्मलोक जाने लगी तब उसने मुझे समझा कर कहा कि तुम वहीं रह कर तपस्या करो। त्रेता युग में परब्रह्म का मनुष्यावतार होगा। वे पिता की आशा मान कर स्त्री और छोटे भाई के सहित वन में पायेंगे और उनकी स्त्री को राक्षस हर ले जायगा । तब उन्हें ढूंढने के लिए रामचन्द्रजी बहुत से बानर दूत भेजेंगे । वे बन्दर तुझे मिलेंगे, तू आदर-पूर्वक उन्हें विदा कर के परमात्मा रामचन्द्रजी के दर्शन करना तो अपनी श्रेष्ठगति को प्राप्त होगी। आज वह हेमा की कही हुई बात सच्ची हुई। मूंदहु नयन बिधर तजि जाहू । पैहहु सीतहि जनि पछिताहू । नयन {दि पुनि देखहि बीरा । ठाढ़े सकल सिन्धु के तीरा ॥३॥ आँख बन्द कर लो तो बिल छोड़ कर बाहर जा निकलोगे, सीताजी को पाओगे, पछ- ताओ मत । फिर सब वीरों ने आँख मूंद कर देखा तो समुद्र के किनारे खड़े हैं ॥३॥ बिना अधिार अर्थात् पाँच से चले नहीं, पर समुद्र के किनारे पहुँच गये प्रथम विशेष अलंकार है। सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा । जाइ कमल-पद नायेसि माथा ॥ नाना भाँति बिनय तेहि कीन्ही। अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही ॥४॥ फिर वह तपस्विनी जहाँ रघुनाथजी. थे वहाँ गई और जा कर चरण-कमलों में मस्तक नवाया। उसने नाना प्रकार से बिनती की, प्रभु रामचन्द्रजी ने उसे अपनी अटल भकि दी ॥४॥ दो-बदरीबन कहूँ सो गई, प्रभु अज्ञा धरि सीस। उर धरि राम-चरन जुग, जे बन्दत-अज-ईस ॥२५॥ प्रभु रामचन्द्रजी की आशा शिरोधार्य कर के और उनके युगल वरण-जिनकी बन्धना ब्रह्मा और शिवजी करते हैं, हृदय में धर कर वह बदरी वन (प्रयाग) चली गई ॥२॥ चौ०-इहाँ बिचाहिँ कपि मन माहीं। बीती अवधि काज कछु नाहौँ । सबमिलि कहहिं परसपर बाता। बिनु सुधिलियेकरबकामाता॥१॥ यहाँ बन्दर मन में विचारते हैं कि अवधि बीत गई, पर काम कुछ नहीं हुआ। सब मिल कर परस्पर यह बात कहते हैं कि भाई ! बिना पता लगाये हम क्या करेंगे.१ ( इस तरह लौटने से राजाशा के अनुसार मत्यु होगी क्योंकि अवधि बीत गयी है ) ॥१॥ > ।