पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८७

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रामचरित मानस । राम भालु-कपि-कटक बटोरा । सेतु-हेतु सम कीन्ह न थोरा॥ नाम लेत भव-सिन्धु सुखाहीं । करहु विचार सुजन मन माहीं ॥२॥ रामचन्द्रजी ने भालू बन्दरों की सेना इकट्ठी करके समुद्र पर पुल बनाने में थोड़ा परि- श्रम नहीं किया और नाम का मुख से उच्चारण करते ही संसार सागर सूख जाता है। हे सज्जनो ! मन में विचार कीजिए (नामी से जाम की महिमा कितनी अधिक है) ॥२॥ समुद्र में पुल बाँधने की कथा लङ्काकाण्ड के श्रादि में देखो। राम सकुल-रन-रावन मारा । सीय सहित निज-पुर पग धारा ॥ राजा राम अवध रजधानी । गावत गुन सुर-मुनि-धर-वानी ॥३॥ रामचन्द्रजी ने संग्राम में सकुटुम्ब रावण को मारा और सीताजी के सहित अपने नगर में पदार्पण किया । रामचन्द्रजी राजा हुए और अयोध्या राजधानी के गुण श्रेष्ठवाणी से देवता तथा मुनि गान करते हैं ॥ ३ ॥ सेवक सुमिरत नाम सप्रीती । बिनु सम प्रबल माह दल जीती ॥ फिरत सनेह-मगन सुख अपने । नाम प्रसाद सोच नहिँ सपने ॥४॥ भक्त लोग प्रीति-पूर्वक नाम को स्मरण करके विना परिश्रम ही शान की जबर्दस्त सेना को जीत कर स्नेह में सराबोर हुए अपने प्रानन्द से विचरण करते हैं । नाम के प्रसाद, से उन्हें स्वप्न में भी कोई सोच नहीं होता ॥४॥ दो०-ब्रह्म-राम-नै नाम बड़, बरदायक बरदानि । रामचरित-सतकोटि महँ, लिय महेस जिय जानि ॥२॥ निर्गुण-ब्रह्म और रामचन्द्रजी से नाम बड़ा है, जो वर देनेवालों को वर देनेवाला है। अतिशय अपार रामचरित में से (नाम को सार रूप ) मन में जान कर शिवजी ने ग्रहण किया है ॥२५॥ उपमान निर्गुण-ब्रह्म और सगुण-रामचन्द्रजी से उपमेय रामनाम बड़ा कहा गया है और दोहे के दूसरे, तीसरे, चौथे चरण में उपमेय के उत्कर्ष का कारण कथन है। यह व्यतिरेक अलंकार है। 5 चौ-नाम प्रसाद सम्भु अबिनासी । साज-अमङ्गल मङ्गल-रासी । सुक सनकादि सिद्ध मुनि जोगी । नाम-प्रसादब्रह्म-सुख-भोगी ॥१॥ नाम के प्रसाद से शिवजी अविनाशी हैं और अमङ्गल के साज में मङ्गल के राशि हैं। शुकदेव, सनकादिक, सिद्ध, मुनि और योगीजन नाम ही के प्रसाद से ब्रह्मानन्द के भोगनेवाले हैं ॥१॥