पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८८८

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1 पञ्चम सोपान, सुन्दरकाण्ड । ६१५ हनूमानजी के भीषण गर्जन रूपी दोष से राक्षसियों को गर्भपात का विकार हो जाना "द्वितीय उल्लास अलंकार है। हरषे सब बिलोकि हनुमाना । नूतन जनम कपिन्ह तब जाना। मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा । कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा ॥२॥ हनुमानजी को देख कर सय प्रसन्न हुए; तब वानरों ने अपना नया जन्म समझा । देखा कि पवनकुमार का मुख प्रसन है और शरीर में तेज विराजमान है, इस से जान लिया कि रामचन्द्रजी का कार्य इन्होंने किया ॥२॥ मिले सकल अति भये सुखारी। तलफत मीन पाव जनु बारी । चले हरषि रघुनायक पासा । पूछत कहत नवल इतिहासा ॥३॥ सब चन्दर हनूमानजी से मिल कर अत्यन्त सुखी हुए, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों मिना पानी के तड़पती दुई मछली जल पा गई हो । प्रसन्न होकर रघुनाथजी के पास चले, लंका का नवीन समाचार बन्दर पूछते हैं और हनूमानजी कहते जाते हैं ॥३॥ तब मधुबन भीतर सब आये । अङ्गद सम्मत मधु-फल खोये ।। रखवारे जब बरजइ लागे । मुष्टि प्रहार हनत सब भागे ॥४॥ तय सब मधुवन (सुग्रीव के धाग) के भीतर आये और अङ्गद की सलाह से मीठे फल खाये । जब रक्षक मना करने लगे, तब उन्हें धूसा से मारावे सब मागे ॥४॥ समा की प्रति में, घरजा के स्थान में घरजन' पाठ है। दो०-जाइ पुकारे ते सब, बन उजार जुबराज । सुनि सुग्रीव हरष कपि, करि आये प्रभु काज ॥२८॥ चे सब जाकर सुप्रीम से पुकार किये कि युवराज ने वन को उजाड़ डाला | सुन कर सुग्रीव प्रसन्न हुए, उन्हों ने जान लिया कि यन्दर स्वामी का कार्य करके लाये हैं ॥२८ घगीचा उजाड़ने के लक्षण से सुग्रीव को यह निश्चय होना कि बन्दर स्वामी का कार्य कर आये 'अनुमानप्रमाण अलंकार' है। चौo-जाँ न होतिसीतासुधि पाई । मधुपन के फल सकहिँ कि खाई ॥ एहि विधि मन बिचार करराजा। आइगये कपिसहित समाजा ॥१॥ यदि सीताजी की खबर न मिली होती तो क्या (बन्दर) मधुवन के फल खा सकते थे? (कदापि नहीं)। इस तरह वानरराज विचार कर ही रहे थे कि समाज के सहित श्रमजी मा गये ॥१॥ आइ सबहिँ नावा पद सीसा । मिले सबन्हि अति प्रीति कपीसा । पूछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपा भी काज बिसेखी ॥२॥ सबने श्रा कर चरणों में मस्तक नवाया, कपिराज लमो से अत्यन्त प्रीति के साथ मिले।