पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८९

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मत रामचरित-मानस। अजामिल ब्राह्मण था, फुसंग में पड़ कर कुमार्गी, मांसाहारी, मद्यपी, चार, ठग, वेश्यागामी हो गया था। सारी उमर उसने दुष्कर्मों में विताई । सन्तोपदेश से पुत्र का नाम नारायण रखा । -गजेन्द्र और प्राह के मरती वेर पुत्र को पुकारा । नाम के प्रभाव से वैकुण्ठवासी हुआ । गज- युद्ध की कथा प्रसिद्ध है । हाथी ने दोन हो एक बार भगवान का नाम लेकर पुकारा। गरुड़ को छोड़ कर पैदल दौड़े आये और उसे बचाया। गणिका-पिंगला नाम की वेश्या अपने जार के इन्तज़ार में रात भर जागती रही, वह नहीं आया। उसको अपने दुकों से घृणा हुई । दुर्वासनाओं को त्याग उसने ईश्वर में बष लगाया। वह नाम के प्रभाव से स्वर्गवासिनी हुई। दो-नाम राम को कल्पतरु, कलि कल्यान-निवास । जो सुमिरत मयो भाँग तें, तुलसी तुलसीदास ॥२६॥ कलि में रामचन्द्रजी का नाम कल्याण का स्थान और कल्पवृक्ष है। जिसको स्मरण करके तुलसीदास भाँग से तुलसी हो गया ॥२६॥ चौ०-चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका। भये नाम जपि जीव विसाका ॥ बेद-पुरान-सन्त एहू । सकल सुकृत फल राम सनेहू ॥१॥ चारों युग, तीनों काल और तीनों लोक में नाम को जपकर जीव शोक रहित हुए हैं विद पुराण और सन्त जनों का यही मत है कि रामचन्द्रजी में प्रेम होना सम्पूर्ण पुण्यों का फल है ॥१॥ एक रामचन्द्रजी के स्नेह में सारे सुश्तों के फल की समता देना 'तृतीय तुल्ययोगिता अलंकार' है। ध्यान प्रथम जुग मख विधि दूजे । द्वापर परितोषन प्रभु पूजे ॥ कलि केवल मल मूल मलीना । पाप पयोनिधि जन मन मीना ॥२॥ प्रथम-सत्ययुग में ध्यान से, दूसरे-त्रेतायुग में यज्ञ-विधान से और द्वापर में पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। मलिन कलियुग केवल मैलेपन की जड़ है, जिसमें पाप रूपी समुद्र में लोगों का मन लछली रूप होकर निमग्न रहता है ॥२॥ नाम कामतरु काल कराला । सुमिरत समन सकल जग जाला ॥ राम नाम कलि अभिमत दाता । हित परलोक लोक पितु माता ॥३॥ इस भीषण कलिकाल में नाम कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संपूर्ण संसार के बन्धनों का नाश कर देता है। राम-नाम कलियुग में वाञ्छित फल का देनेवाला है और परलोक में माता-पिता के समान हितकारी है ॥ ३ ॥ गुटका में 'सुमिरत सकल समन जलाला पाठ है। नहिं कलि करम न भगति बिबेकू । राम नाम अवलम्बन कालनेमि कलि. कपट निधान । नाम सुमति समग्थ हनुमानू ॥४॥ कलियुग में न कर्म, न भक्ति और ग शान हो का सहारा है, एक रामचन्द्रजी का नाम ही आधय देनेवाला है । कपट का स्थान कलियुग रूपी कालनेमि के लिए नाम सुन्दर मति. मान और समर्थ हनुमान है ॥ ४॥