पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९९४

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षष्ठ सोपान, लङ्काकाण्ड । कथा कही सब तेहि अभिमानी। जेहि प्रकार सोता हरि आनी ॥ तात कपिन्ह सब निसिचर मारे । महा-महा-जोधा सङ्घारे ॥५॥ उस अभिमानी ने जिस प्रकार सीताजी को हर कर ले आया था, वह सारी कथा उससे कही और कहा-हेतात ! बन्दरों ने सब राक्षसों को मार डाला, बड़े बड़े योद्धाओं का वध किया है ॥५॥ दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी । म अतिकाय अकल्पन भारी । अपर महादर आदिक बीरा । परे समरमहि सब रनधीश ॥६॥ दुर्मुख, देवशत्रु, मनुष्य-भक्षक, भारी भट अतिकाय, अकम्पन और महोदर आदि सभी रणधीर धीर रणभूमि में मारे गये ॥६॥ कुम्भकर्ण के पूछने पर रावण ने अपनी पराजय का हाल वर्णन किया, उसका गूढ़ अभिणय वीरों का संहार सुना कर कुम्भकर्ण को उत्तेजित करने का था, यह प्रश्न सहित 'गूढ़ोत्तर अलंकार है। दो०- सुनि दसकन्धर बचन तब, कुलकरन बिलखान । जगदम्बा हरि आन अब, सठ चाहत कल्यान ॥२॥ तब रावण की बात सुन कर कुम्भकर्ण उदास हो कर बोला-अरे मूर्ख ! जगन्माता को हर लाकर भय तू अपना कल्याण चाहता है ॥१२॥ चौ०-मलन कीन्हत निसिचर-नाहा । अब मोहि आइ जगायेहि काहा ।। अजहूँ तातत्यागि अभिमाला । मजहु राम होइहि कल्याना ॥१॥ हे राक्षसराज तू ने अच्छा नहीं किया, अब मुझे किसलिए आ कर जगाया ? हे तात ! अब भी असिमान त्याग कर रामचन्द्रजी को भजो तो तुम्हारा कल्याण होगा॥१॥ कुम्भकर्ण प्रत्यक्ष तो रावण को सिखाता है, इस प्रस्तुत कथन में दूसरा शङ्कर अन्य राक्षसों को सुनाने का तात्पर्य निकलता है, जिससे राक्षस वंश का कुशल हो। यह 'प्रस्तु- हैं दससील अनुज रघुनायक । जाके हनूमान से पायक। अहह बन्धु तैं कोन्हि खोटाई । प्रथमहि मोहि न सुनायहि आई॥२॥ हे दशग्रीव ! जिन रघुनाथजी के हनूमान जैसे धावन हैं, क्या वे मनुष्य हैं ? भाई ! खेद है कि तू ने बड़ी बुराई की जो पहले ही भाकर मुझे नहीं सुनाया ॥२॥ रासचन्द्रजी का मनुष्य होना काकु से नहीं करनो काकुतिप्त गुणीभूत व्या है कि वे ईश्वर हैं। यदि पहले मुझसे पूछे होता तो मैं तुझे अवगत कर देवा । कीन्हेहु प्रभु बिरोध सिक खिरजि सुर जाके सेवक ॥ • समय निरबहा ॥३॥ नारद मुनि माहि ज्ञ है राजन् । तुमने उर वाकुर अलंकार' है। -वता