पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१२६

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म छाछ म १२३ कोई बहुत दुबला और कोई खूब मोटा, कोई पवित्र, कोई अपवित्र दशा धारण किये हुये है। भयंकर गहने पहने, हाथ में कपाल लिये और सब के सब शरीर में ताज़ा खून लपेटे हुये हैं। किसी का मुंह गधे का-सा, किसी को कुत्ते का-सा, किसी को सुअर का-सा और किसी का सियार का-सा हैं। उनके असंख्य वेषों को कौन गिने ? बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच और योगियों की जमाते हैं, उनका वर्णन करते नहीं बनता।। हु नाचहिं गावहिं गीत परसतरंगी भूत सव ।। 62 देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र विधि९३ सब भूत, प्रेत बड़े मौजी हैं। वे नाचते हैं और गीत गाते हैं। देखने में बहुत ही बेढंगे-से जान पड़ते हैं और विचित्र ढंग से बोलते हैं। जस दूलह तस बनी वराता ॐ कौतुक विविध होहिं मग जाता इहाँ हिमाचल चेउ विताना ॐ अति विचित्र नहिं जाइ वखाना जैसी दूलह है, वैसी ही बात बनी है। मार्ग में चलते हुये तरह-तरह के तमाशे होते जाते हैं। इधर हिमाचल ने ऐसा विचित्र मण्डप बनवाया कि जिस का वर्णन नहीं हो सकता। सैल सकल जहँ लगि जग माहीं छ8 लघु विसाल नहिं बरनि सिराहीं बन सागर सन् नदी तलावा ॐ हिमगिरि सच कहुँ नेवति पठावा ३ संम) जगत् में जितने पहाड़ थे, क्या बड़े और क्या छोटे, जिनका वर्णन करके के पार नहीं मिलता, तथा जितने बन, समुद्र, नदियाँ और तालाब थे सबको राम) हिमाचल ने न्योता भेजा है। । कामरूप सुन्दर तनु धारी ॐ सहित समाज सोह वर नारी आए सकल हिमाचल गेहा 3 गावहिं मंगल सहित सनेहा वे सब अपनी-अपनी इच्छानुसार रूप धारण करने वाले सुन्दर शरीर धारण एम किये हुए, सुन्दरी स्त्रियों तथा समाजों के साथ सुशोभित हिमाचल के घर आये ।। सब स्नेह-सहित मङ्गल गीत गाते हैं । * प्रथमाहिं गिरि बहु गृह सँवाए ॐ जथाजोग जहँ तहँ सच छाए पुर सोभा अवलोकि सुहाई ६३ लागइ लधु विरंचि निपुनाई हिमाचल ने पहले ही से बहुत-से घरों को सजचा रक्खा था। उन्हीं में वे । ], = =- = - -= = =- -=- = - -= = -=- = -