पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१३३

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ॐ 'सो जेवनार कि जाइ बखानी ॐ बसहिं भवन जेहि मातु भवानी ।

सादर बोले सकल बराती ॐ विष्नु विरंचि देव सब जाती ॥' 
 भला, जिस घर में स्वयं माता भवानी रहती हों, क्या वहाँ की ज्योनार का वर्णन किया जा सकता है ? हिमाचल ने आदरपूर्वक सब बरातियों को--- विष्णु, ब्रह्मा और सब जाति के देवताओं को बुलाया। 
बिबिध पाँति बैठी जेवनारा ॐ लगे परोसन निपुन सुआरा ॥
नारिबृन्द सुर जेंवत जानी ॐ लगीं देन गारी मृदु वानी ॥
 भोजन करने वालों की बहुत सी पंगतें बैठीं। चतुर रसोइये परोसने लगे। स्त्रियों की मंडलियाँ देवताओं को भोजन करते हुये जानकर कोमल वाणी से गालियाँ देने लगीं। 
छन्द-गारी मधुर सुर' देहिं सुन्दरि ब्यंग बचन सुनावहीं | 
    भोजन करहिं सुर अति बिलंब बिनोद सुनि सचु पावहीं ॥
    जेबँत जो बढ्यौ अनंद सो मुख कोटिहू न परे कह्यौ । 
    अँचवाइ दीन्हे पान गवने बास जहँ जाको रह्यौ ॥
 सब सुन्दरी स्त्रियाँ मीठे स्वर में गालियाँ देने लगीं और तरह-तरह के व्यंग्य से भरे वचन सुनाने लगीं। देवगण धीरे-धीरे बड़ी देर तक भोजन करते हैं और विनोद सुनकर सुख अनुभव करते हैं। जेवनार के समय जो आनन्द बढ़ा, वह करोड़ मुंह से भी नहीं कहा जा सकता । ( भोजन कर चुकने पर ) सबके हाथ-मुंह धुलवाकर पान दिये गये । फिर सब लोग जो जहाँ ठहरे थे, वहाँ चले गये । [अनुज्ञा अलंकार ]
    बहुरि मुनिन्ह हिमवंत कहँ लगन सुनाई आइ।
 ॐ समय बिलोकि विवाह कर पठए देव बोलाइ ॥ ९९  
फिर मुनियों ने लौटकर हिमाचल को लगन ( लग्न-पत्रिका ) सुनाई और ॐ 

विवाह का समय देखकर देवताओं को बुलौआ भेजा।

   बोलि सकल सुर सादर लीन्हे ॐ सबहिं जथोचित शासन दीन्हे । 
   ॐ वेदी बेद विधान सँवारी ॐ सुभग सुमंगल गावहिं नारी ॥

१. स्वर ।

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