पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१३५

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। १३२ % अचटिना १ मुनि अनुसासन गनपतिहिं पूजेउ संभु भवानि । राम कोउ सुनि सँसय करै जनि सुर अनादि जियजानि राम मुनियों की आज्ञा से शिवजी और पार्वतीजी ने गणेशजी का पूजन * किया। मन में देवताओं को अनादि समझकर कोई इस बात को सुनकर शङ्का न करे ( कि पिता ने पुत्र का पूजन उसके जन्म से पहले ही कैसे कर लिया।) जसि विवाह के बिधि श्रुति गाई ॐ महा मुनिन्ह सो सच करवाई। राम) गहि गिरील कुस कन्या पानी" ॐ भवहिं समरपी जानि भवानी | बेद में विवाह की जैसी रीति कही गई है, वह सब यहाँ मुनियों ने राम करवाई। हिमाचल ने अपने हाथ में कुश लेकर और कन्या का हाथ पकड़कर (राम) भवानी जानकर उन्हें शिवजी को समर्पण किया । पानि ग्रहन जब कीन्ह महेसा ॐ हिय हरपे तब सकल सुरेसा । वेद मंत्र सुनिवर उच्चरहीं ॐ जय जय जय संकरः सुर करहीं है । जब शिवजी ने पार्वती की पाणि-ग्रहण किया, तब इन्द्रादि सब देवता * मन में बड़े ही प्रसन्न हुए। मुनिवर बेद-मन्त्रों का पाठ करने लगे और देवगण शिवजी की जय-जयकार करने लगे । वाजहिं वाजन विविध विधाना ॐ सुमन वृष्टि नभ भै विधि, नाना है हर गिरिजा कर भयउ विवाहू ॐ सकल भुवन भरि रहा उछाहू हैं। तरह-तरह के बाजे बजने लगे और आकाश से नाना प्रकार के फूलों की प्रामा ॐ वर्षा हुई। शिव-पार्वती का विवाह हो गया । सारे ब्रह्माण्ड में आनन्द भर गया। दासी दास तुइँग स्थ' नागा धेनु इसन मनि वस्तु विभागा अन्न कनक भाजन भरि जाना' ॐ दाइज दीन्ह न जाइ बखाना | हिमाचल ने दास, दासी, घोड़े, रथ, हाथी, गायें, वस्त्र, मणि, अनेक प्रकार की चीजें सुवर्ण के बर्तनों में अन्न भरकर, गाड़ियों में लदवाकर दहेज में दिया, जिनका वर्णन नहीं हो सकता। ) छन्द-दाइज दियौ बहु भाँति पुनि र जोरि हिमभूधर कह्यौ। ॐ का देउँ पूरनकास संकर चरन पंकज गहि रह्यौ ॥ ॐ * १. हाथ । २. सवारी ।। |