पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१३८

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ॐ जबहिं संभु कैलासहि आए $ सुर सव निज निज लोक सिधाए रामे) जगत मातु पितु संभु भवानी ॐ तेहि सिंगारु न कहउँ वखानी जब शिवजी कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तब सब देवगण अपने-अपने लोकों को राम्रो चले गये । (तुलसीदासजी कहते हैं कि ) पार्वती और महादेवजी जगत् के माता है और पिता हैं, इसलिये मैं उनके शृङ्गार का वर्णन नहीं करता। कहिं बिबिध बिधि भोग विलासा ॐ गनन्हे समेत साहिं कैलासा हर गिरिजा विहार नित नएऊ ॐ हि विधि विपुल काल चलि गएऊ | शिव और पार्वती तरह-तरह के भोग-विलास करते हुये अपने गणों के साथ कैलाश पर रहने लगे। शिव और पार्वती नित्य नये विहार करते थे। इस प्रकार बहुत समय बीत गया। तब जनमेज पटवन कुमारा ॐ तारकु असुर समर जेहि मारा आम निगम प्रसिद्ध पुराना ॐ पन्मुख जनमु सकल जरा जाना तब छः मुंह वाले ( स्वामिकार्तिक ) पुत्र का जन्म हुआ, जिन्होंने लड़ाई * में तारक नामक असुर को मारा । बेद, शास्त्र और पुराणों में उनके जन्म की कथा प्रसिद्ध है और उस कथा को सारा जगत् जानता है । एम) छंद-जरा जान षन्मुख जनसु करलु प्रताप पुरुषारथु सहा । तेहि हेतु मैं बृषकेतु सुत कर चरित छैपहि कहा ॥ | यह उमा संलु बिवाहु जे नर नारि हहिं जे गावहीं । | कल्यान जि बिबाह सैगल सर्वदा सुखु पावहीं ॥ रामो स्वामिकार्तिक के जन्म, कर्म, प्रताप और महा पुरुषार्थ को सारा जगत् जानता है । इसलिये मैंने शिवजी के पुत्र “स्वामिकार्तिक” का चरित्र संक्षेप ही में कहा है। शिव-पार्वती के विवाह की इस कथा को जो स्त्री-पुरुष कहेंगे और गायेंगे, वे सब कल्याण के कामों और विवाहोत्सव में सदा सुख पायेंगे। एमाले : चरित सिंधु गिरिजा इसन बेद न पावहिं पारु। एम - बरनै तुलसीदासु किमि अति मतिमंद गवांस॥१०३॥ गिरिजापति महादेवजी का चरित्र सागर के समान ( अपार ) है। उसका