पृष्ठ:रामचरित मानस रामनरेश त्रिपाठी.pdf/१५३

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• १५०, छfaना के प्रकार से अलौकिक है। उसकी महिमा कही नहीं जा सकती। एले जेहि इमि गावहिं बेद बुधजाहि धरहिं मुनि ध्यान। एम सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान११८ जिसको वेद और पंडित इस तरह गाते हैं और मुनि जिसका ध्यान राम धरते हैं, वहीं दशरथ के पुत्र भक्तों के हितकारी अयोध्या के स्वामी भगवान् रामचन्द्रजी हैं। राम कासीं मरतु जंतु अवलोकी ॐ जासु नाम बल करउँ विसोकी राम ॐ सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी ॐ रघुवर सब उर अंतरजामी के हे पार्वती ! जिसके नाम के बल से काशी में मरते हुए प्राणी को देखकर । मैं उसे शोक-रहित कर देता हूँ ( अर्थात् मुक्त कर देता हूँ.), वही रघुवर ( रामॐ चन्द्रजी ) सत्रके हृदय में रहने वाले जड़-चेतन के स्वामी मेरे प्रभु हैं। राम विवसहुँ जासु नाम नर कहहीं ॐ जनम अनेक चरित अघ दहहीं क्रू सादर सुमिरन जे नर करहीं ॐ भव वारिधि गोपद इव तरहीं है । विवश होकर ( बिना इच्छा के ) भी जिनका नाम लेने से मनुष्यों के अनेक जन्मों के किये हुए पाप जल जाते हैं। फिर जो मनुष्य आदर-पूर्वक उन का स्मरण करते हैं, वे तो संसाररूपी समुद्र को गाय के खुर से बने गड्ढे के * समान पार कर जाते हैं। राम सो परमातमा भवानी ॐ तहँ भ्रम अति अविहित तव बानी रामे) अस संसय आनत उर माहीं $ ग्यान विराग सकल गुन जाहीं हे पार्वती ! वही परमात्मा रामचन्द्रजी हैं। उनमें भ्रम है, तुम्हारा ऐसा कहना राम) बहुत ही अनुचित है। इस तरह का सन्देह मन में लाते ही (मनुष्य के) ज्ञान-वैराग्य । ॐ आदि सारे गुण चले जाते हैं। सुनि सिव के भ्रम भंजन वचना ॐ मिटि गै सब कुतरक के रचना * भइ रघुपति पद प्रीति प्रतीती ॐ दारुन असंभावना बीती | शिवजी के भ्रम-नाशके वचनों को सुनकर ( पार्वती के ) सारे कुतर्को की ॐ रचना मिट गई। उनके चित्त में रामचन्द्रजी के चरणों में प्रेम और विश्वास रिम) । हो गया और कठिन मिथ्या कल्पना जाती रही ।।